बिरसा मुंडा (धरती बाबा) की आज 121वीं पुण्यतिथि
क्रांतिकारी विशेष । मुंडा जनजातीय के जीर्णोद्धारी झारखण्ड(रांची) के खूंटी जिले के उलिहातू गाँव में सुगना मुंडा और करमीहातु के घर 15 नवंबर, 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा बचपन में बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे। मुंडा जनजातीय उस समय पठारों पर जीवन यापन करती थीं। इनकी रूचि प्रारम्भ से ही सामाजिक सरोकारों में थीं।
1894 में छोटा नागपुर में मानसून के साथ न देने पर आकाल और महामारी की भयावह स्थिति आ गई। तब बिरसा मुंडा ने पीड़ितों की जम कर सेवा की। इसी सेवा ने इन्हें ‘महापुरुष’ और ‘धरती बाबा’ जैसे उपाधि से अलंकृत किया। 1 अक्टूबर, 1894 को ब्रिटिश साम्राज्य से लगान माफ़ी के लिए आंदोलन ध्वज के साथ क्रांतिकारियों की दौड़ में शामिल हो गए। 3फरवरी, 1898 में बिरसा की अपने 400 तीर-कमान वाले क्रांतिकारी साथियों सहित तांगा नदी के तट पर अंग्रेजों से लड़ाई हुई जिसमें ये जीत के साथ आजादी के जंग के एक प्रभावशाली नायक के रूप में उभरे।
फिर इन्हें आदिवासियों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और 2 साल की सजा सुनाई गई। जेल में ही अग्रेजों द्वारा धीमा जहर दिए जाने के कारण 9 जून, 1900 को मात्र 25 वर्ष की यौवनावस्था में ही कारावास में मृत्यु हो गई। इनके इसी बलिदान के लिए बिहार, झारखण्ड, ओड़िसा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में आज भी भगवान की तरह पूजा होती है। इनके नाम पर बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा भी है। तथा साथ ही रांची में कोकर के डिस्टिलरी ब्रिज के पास समाधि और मूर्ति भी है।