दिग्गजों को राजनीति का ककहरा पढ़ाते-पढ़ाते केजरीवाल बनेंगे प्रधानमंत्री!

मालिवाल की कथित पिटाई और कुछ इसी तरह की राजनीति प्रतिद्वंद्विता की लड़ाई तय करेगी कि भविष्य में राजनीति का रास्ता कौन से दो बड़े बदलाव तय करेंगे…देखा जाए तो आज की पूरी राजनीति भी इन्हीं दो बातों के इर्द-गिर्द घूम रही है। पहली कि बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनने जा रहे हैं केजरीवाल और दूसरी कांग्रेस को रिप्लेस करने जा रहे हैं केजरीवाल और इन दोनों बातों के बीच राजनीति अपने सबसे ज्यादा गंदगी, नीचता और आखिरकार पतन के दौर से गुजरेगी, ये भी तय है। स्वाति मालिवाल के साथ जो हुआ, वो इसकी तस्दीक कर रहा है…

स्वाति मालिवाल का केजरीवाल पर आरोप क्या साबित कर रहा है…क्या केंद्रीय सत्ता के गलियारों तक पहुंच बनाने के लिए केजरीवाल की पार्टी सहित भाजपा और कांग्रेस क्या वो सब करेंगी, जिसके बारे में क्लिक इंडिया शुरू से ही कहता आ रहा है। हाल के वर्षों में देश ने देखा है कि राजनीति अब देश के लिए कम, जन सरोकार के लिए कम, रसूख और बदले की भावना से ज्यादा हो रही है। जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पी चिदम्बरम गृह मंत्री थे तो कैसे अमित शाह को गुजरात से दर-बदर किया गया, और जब भाजपा की सरकार सत्ता में आई और अमित शाह गृह मंत्री बने तो कैसे घर की दीवार फांदकर पी चिदंबरम को एक अधिकारी गिरफ्तार करता है और उस अधिकारी को फिर राष्ट्रपति पदक मिलता है, ये भी पूरे देश ने देखा। समाजवादी पार्टी के इशारे पर मायावती के कपड़े फाड़ने की कहानी भी पूरे देश ने पढ़ा, दक्षिण की कद्दावर नेता जयललिता की जब विधानसभा में साड़ी खींची गई और जब जयललिता सत्ता में आईं तो व्हील चेयर पर बैठे करुणानिधि की भी परवाह नहीं की और अपने अपमान का बदला करुणानिधि के घोर अपमान से लिया। राजनीतिक बदले की आग कुछ इस स्पीड में बढ़ती रही कि वो सीटिंग मुख्यमंत्री…ध्यान दीजिएगा सीटिंग मुख्यमंत्री के घर पर…और सीटिंग मुख्यमंत्री इसलिए कह रहा हूं कि गठबंधन की पार्टियों द्वारा ये वर्ड केजरीवाल की राजनीति चमकाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए सीटिंग मुख्यमंत्री शब्द का यूज किया जाता रहा था और कहा जाता था कि एक सीटिंग मुख्यमंत्री को मोदी ने जेल में ठूंस दिया। तो सीटिंग मुख्यमंत्री के घर पर राज्य सभा सांसद स्वाति मालिवाल को इसी सीटिंग मुख्यमंत्री का पीए सबके सामने पीटने का आरोप लगता है, ये आरोप भी देशभर के समाचार पत्रों, टीवी चैनलों की सुर्खियां बनी।

ये घटनाएं बताती हैं कि किस तरह से नेता सत्ता के मद में अंधे होकर सबकुछ ताक पर रख देते हैं। और इस मदांधता में तीन पार्टियों के बीच जबरदस्त रस्साकस्सी चल रही है, जिसमें पूर्व की एक रसूख वाली पार्टी कांग्रेस को जनता हर जगह से नकार रही है इसलिए लाइमलाइट में ये पार्टी कम है, दूसरी पार्टी है केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जिसे लेकर भाजपा डरी हुई है कि ये दिल्ली और पंजाब में जिस तरह से कांग्रेस को बेदखल कर दी और भाजपा को भी आजतक दिल्ली में नहीं सत्तासीन होने दिया,भाजपा को दिल्ली एमसीडी चुनाव से भी भारी फजीहत के साथ बेदखल किया, वैसे ही एक दिन केंद्र से न बेदखल कर दे।
और दूसरी तरफ केजरीवाल भाजपा के केंद्रीय सत्ता में होने से डरे हुए हैं और भरसक कोशिश में हैं कि उनके अधिक से अधिक सांसद लोकसभा पहुंचें ताकि किसी भी तरह से गठजोड़ की सरकार सत्ता में आ जाए और वे जेल में जाने से बच जाएं, जैसा कि वे जेल से निकलने के बाद वोटरों से अपील में कह भी रहे हैं कि अगर लोग 25 मई को आम आदमी पार्टी (AAP) को चुनते हैं, तो उन्हें दोबारा जेल नहीं जाना पड़ेगा। और तीसरी तरफ है इन दोनों पार्टियों से हटकर भाजपा… जिसके सामने आज की तारीख में कोई टिक नहीं पा रहा और कमोबेस नई सत्ता का स्वाद चखने वाली भाजपा को सबसे ज्यादा डर है इस बात का ही है कि कहीं से भी उसकी सत्ता नहीं छिननी चाहिए, अन्यथा राजनीतिक बदले के दौर से उसे भी गुजरना होगा और फिर उसके पक्ष में कोई बोलनेवाला भी नहीं रह जाएगा, क्योंकि राजनीतिक बदले में सिर्फ सत्ता की हनक बोलती है, और उस हनक के पक्ष में टीवी, अखबार सब बोलते हैं, बाकी सब या तो खामोश हो जाते हैं या खामोश करा दिए जाते हैं।

तो क्या केजरीवाल को सत्ता का स्वाद बहुत भा गया है और क्या इस रस्साकसी में कोई भी दल देश और जनता के हितों से ज्यादा अपने बारे में सोच रहा है, अपनी पार्टी के फैलाव के बारे में सोच रहा है। हर किसी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है। कांग्रेस को ही देख लीजिए, इस पार्टी ने लगभग 60 सालों तक देश पर राज किया, आज अगर वो सत्ता से बाहर है तो भाजपा के कारण ही, और सत्ता से दूर रहने के कारण वो बुरी तरह से छटपटा रही है। राहुल गांधी 53 साल के हैं लेकिन 52 साल तक न तो उन्हें भारत टूटा हुआ दिखाई दिया और न ही भारत के साथ अन्याय होते दिखाई दिया लेकिन पिछले एक साल में भारत को वे जोड़ने भी निकले, न्याय दिलाने भी निकले, क्योंकि अब 2024 के चुनाव चल रहे हैं, राहुल ने देश का मूड भांप लिया है, सर्वे भी मोदी के पक्ष में चिल्ला-चिल्लाकर बोल रहे हैं और इन सब की आवाज दबाने के लिए ज्यादा तेज आवाज में राहुल चिल्ला रहे हैं कि लिखकर ले लो, 2024 में मोदी नहीं आएंगे… तो इन आंकलन में यही समझ में आ रहा है कि कांग्रेस समझ रही है कि उसकी प्रतिद्वंद्वी है बीजेपी और यहीं कांग्रेस भूल कर रही है, कांग्रेस बीजेपी को अभी टक्कर नहीं दे सकती लेकिन पूरा प्रयास बीजेपी के खिलाफ कर रही है और जो आम आदमी पार्टी आज भी उसका नुकसान कर रही है, जो सरकार में उसका साथ छोड़कर चली गई, जो उसका भविष्य का प्रतिद्वंद्वी है, उसके साथ गठबंधन कर रही है और उसके इस रणनीतिक खामियों का फायदा उठाकर केजरीवाल खुद को मजबूत करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।

इसीलिए जेल से निकलते ही केजरीवाल ने पीएम मोदी पर जबरदस्त हमला भी बोला और हर भाषण में उनका एक ही मकसद है पीएम मोदी पर चुनावी हमला…भाजपा का वे जितना नुकसान कर सकते हैं करने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि बिना राजनीतिक तौर पर मजबूत हुए वे कुछ नहीं कर सकते। और इसीलिए सबसे पहले जेल जाने के बाद अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं में जो मायूसी छाई थी, उसे उन्होंने अपने जोशीले भाषण द्वारा दूर किया। और इसके बाद शुरू हुआ पीएम मोदी और अमित शाह पर करारा हमला। केंद्रीय सत्ता का डर राज्यों में पैदा किया। उदाहरण दिया शिवराज सिंह चौहान का और डर फैलाते गए भाजपा के सबसे पॉपुलर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक। क्या केंद्र सरकार के मंत्री, क्या राज्य के मुख्यमंत्री, क्या जनता, क्या पार्टी, क्या कार्यकर्ता…सबके अंदर आशंका के बादलों को घुमड़ने के लिए छोड़ दिया…योगी आदित्यनाथ का नाम लेना मतलब केजरीवाल की तरफ से उन मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करने की बड़ी चाल, जो वोट डालते वक्त हिंदुत्व को सबसे पहले देखते हैं। दूसरी बात कि केजरीवाल ने मोदी की गारंटी पर यह कहकर सवाल उठाया कि मोदी अगले वर्ष 17 सितंबर को 75 वर्ष के हो जाएंगे और खुद अपने ही फॉर्मूले के अनुसार वो राजनीति से हट जाएंगे। केजरीवाल ने यह कहकर जनता से ही मौन सवाल कर लिया कि तब किसके चेहरे पर वोट कर रहे हैं आप, और खुद जवाब भी दे दिया कि अमित शाह। मतलब अगर मोदी के चेहरे पर वोट कर रहे हैं तो जरा रुकिए, सोचिए और फिर आगे बढ़िये क्योंकि अगर बीजेपी चुनाव जीत जाती है तो मोदी नहीं, अमित शाह पीएम बनने जा रहे हैं इस बार।

केजरीवाल को पता है कि भाजपा अगर दो बार बहुमत से चुनकर आई है तो मोदी के चेहरे पर ही चुनकर आई है, केजरी को ये भी पता है कि दिल्ली में भी कांग्रेस के साथ उनका गठजोड़ भाजपा को नहीं हरा पाएगी और सातों सीट भाजपा के खाते में जा रही है लेकिन इसीलिए तो वे परेशान हैं और ये एजेंडा सेट कर रहे हैं कि भाजपा जीती तो अमित शाह पीएम बन जाएंगे, तो आपलोग मोदी के नाम पर वोट कर फंस जाएंगे…उन्हें पता है कि मोदी के नाम पर ही वोट मिलना है, दो बार मिला भी…भाजपा की बंगाल, उड़ीसा, तमिल, केरल में सीटें बढ़ेंगी, राजस्थान और कर्नाटक में एक दो कम हो सकती हैं, बिहार में एक दो कम होगी, लेकिन सहयोगी भी तो हैं, उन्में भी सीटें कम हो सकती हैं…नॉर्थ ईस्ट में 25 में से 22 सीटें जीतकर भाजपा बेस्ट कर सकती है…तो एक दो राज्यों में कम होगी तो उसकी भरपाई नॉर्थ ईस्ट जैसे राज्य करेंगे।

अब बात करते हैं केजरीवाल के दूसरे स्टेप को स्टैब्लिश करने की….मोदी के बाद किसी का नाम लिया जाता है तो योगी आदित्यनाथ हैं, ये भी केजरीवाल अच्छी तरह से जानते हैं और इसीलिए उन्होंने बीजेपी के इन स्ट्रॉन्ग पीलर्स पर जबरदस्त प्रहार किया। लोगों के बीच मोदी-अमित शाह के तकरार की बातें होती हैं, योगी-अमित शाह की बातें होती हैं लेकिन केजरीवाल पॉलिटिकल गॉसिप को बड़ी चालाकी से अपने चुनावी भाषणों में लगातार स्टैब्लिश कर रहे हैं…जबकि पूरा देश जानता है कि भाजपा किसके चेहरे पर चुनाव लड़ रही है,…केजरीवाल ने अपने भाषण में लगे हाथों ये भी कह दिया कि जिस मोदी की गारंटी पर आपलोग वोट देने जा रहे हैं अगर वे मोदी पीएम ही नहीं बनेंगे तो फिर मोदी की गारंटी का क्या, कौन पूरा करेगा मोदी की गारंटी, ये कहकर केजरीवाल ने एक साथ कई शिकार किये और ये राजनीतिक शिकार उनकी पार्टी के लिए, उनके जेल से बाहर आने के लिए बहुत जरूरी था क्योंकि उन्हें पता है मोदी की पॉपुलैरिटी, उन्हें पता है सर्वे में मोदी कितना आगे हैं, उन्हें याद है पिछले चुनाव में अपनी पार्टी के जमानत जब्त होने के किस्से और केजरीवाल का यह दांव काम कर गया। अमित शाह केजरीवाल की बातों का जवाब देने के तौर पर ही सही, लेकिन सफाई देने लगे। भाजपा के अन्य नेता भी साफ करने लगे ताकि जनता इधर से उधर न हो जाए।

केजरीवाल अन्ना आंदोलन के दौरान अपने वादे, अपने सच्चे होने से लेकर जो भी दावे करते रहे वो सत्ता की सीढ़ियों तक पहुंचने का रास्ता भर था, सत्ता में सवार होते ही केजरीवाल जो नहीं कर पाए, उसे खुद को कट्टर ईमानदार, मोदी को तानाशाह कह कर अपने मुकरे वादों की तरफ से जनता का ध्यान हटाते रहे। और इसका असर जनता के कुछ हिस्से पर हुआ भी है। इसीलिए वे आडवाणी को साइडलाइन करने की बात कह कर मोदी को तानाशाह बताते हैं लेकिन वे नहीं बताते कि उनकी पार्टी से कुमार विश्वास, योगेन्द्र यादव,शाजिया इल्मी, अल्का लांबा और प्रशांत भूषण जैसे नेताओं को उन्होंने एक के बाद एक कैसे अलग कर दिया….तो फिर तानाशाह कौन है… वे ये नहीं बता पाते कि कोर्ट ने उनसे ये क्यों कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय मत जाना, कोई फाइल मत छूना…क्योंकि कोर्ट को ये पता है कि आपके ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप है तो आप गलत कर सकते हैं, प्रभावित कर सकते हैं जांच को तो कोर्ट ने इन शर्तों के साथ उन्हें जमानत दे दिया कि आप जाइये लेकिन चुनाव प्रचार कर के चुपचाप जेल चले आईये लेकिन केजरीवाल इसे चुनावी राजनीति में भुना रहे हैं। केजरीवाल को ये भी पता है कि दिल्ली और पंजाब के बाहर उन्हें कोई नहीं सुनने वाला। लेकिन दूसरी पार्टी के नेता बुला रहे हैं और उनका चेहरा दूसरे राज्यों में चमक रहा है तो इसमें हर्ज क्या है, इससे आनेवाले समय में उनकी पार्टी के लिए उन राज्यों में राजनीतिक जमीन ही तो तैयार होगी।

स्वाति मालिवाल के साथ मारपीट का मामला देखिए और समझिये कि आज राजनीति कितने गंदे स्तर से गुजर रही है। किसी के यहां 500 करोड़ तो किसी के यहां करोड़ों की बरामदगी और गुस्सा ईडी-सीबीआई पर, बेईमान निष्पक्षता की बात करते हैं, लूट-खसोट राजनीति का शगल बन गया है और अक्सर आरोप लगता है कि करोड़ों में टिकट बिका, लेकिन राजनीति में सच्चाई और ईमानदारी की बात करने वाले क्यों नहीं आ पाते। आईआईटी, आईआईएम के लोगों को टिकट क्यों नहीं मिल पाता, क्योंकि वे खरापका बोलते हैं, उनके पास पैसे की कमी नहीं, कमी है देश को एक विजन देने के लिए चांस की, वे देश की नीतियों और विकास के लिए देश से जुड़ना चाहते हैं, आज देश में ऐसे लोगों को टिकट नहीं मिलता। तो समझा जा सकता है कि भाजपा हो या कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी, अगर राजनीति में योग्य उम्मीदवार नहीं आएंगे तो जयललिता, करुणानिधि, योगी आदित्यनाथ, चिदम्बरम, अमित शाह और स्वाति मालिवाल जैसे कद्दावर नेताओं के साथ होनेवाली घटनाओं को रोकने की बात तो दूर, घटनाएं और अधिक बढ़ेंगी ही और एक दिन वही भारत की केंद्रीय सत्ता में काबिज होगा, जो येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतेगा और वो चाहेगा कि अपनी उस जीत को किसी भी तरह से दशकों तक बनाए रखे क्योंकि राजनीतिक बदलाव के साथ उससे बदला भी लिया जाएगा, जैसा कि हमने पहले ही कहा है कि भारतीय राजनीति में बहुत तेजी से ये गंदगी घर कर रही है….

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