बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए यूपी बेसिक शिक्षा लाएगी ‘हैप्पीनेस पाठ्यक्रम’
पढ़ाई-लिखाई करके लोग मल्टीनेशनल कंपनियों में बड़े-बड़े पदों पर नौकरी करते हैं। बहुत से लोग बड़े उद्योग स्थापित कर रहे हैं। कोई बड़ा स्टार बन जाता है लेकिन बहुत सारे ऐसे लोग भी होते हैं जो तमाम उपलब्धियों के बावजूद अवसाद से ग्रसित हो जाते हैं। प्रदेश का युवा अवसाद ग्रसित न हो इसको लेकर यूपी सरकार बेहद गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत योगी सरकार बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में नौनिहालों के लिए ‘हैप्पीनेस पाठ्यक्रम’ लागू करने जा रही है।
यह पाठ्यक्रम सबसे पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 15 जिलों में लागू किया जाएगा, जिसके तहत बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खुशहाल रहने के गुर सिखाए जाएंगे। इस पाठ्यक्रम में बच्चों को बताया जाएगा कि कैसे वह खुश रह सकते हैं, पढ़ाई के साथ-साथ उनके लिए खेल-म्यूजिक-अध्यात्म कितना जरूरी है।
छात्रों को मिलेगी खुशहाल जिंदगी
बेसिक शिक्षा विभाग के राज्य परियोजना कार्यालय में विशेषज्ञ डॉ.सौरभ मालवीय इस सन्दर्भ में बताते हैं कि मुझे शिक्षा के दो ही उद्देश्य समझ आते हैं। पहला यह कि आदमी पढ़-लिखकर खुशहाल जिन्दगी जीने लग जाये और दूसरा यह कि दूसरों के खुशीपूर्वक जीने में सहयोग देने की स्थिति में आ जाये। वह कहते हैं कि छोटी कक्षाओं से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक की शिक्षा का कुल उद्देश्य इतना ही है। जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का उद्देश्य खुशहाली ही है।
अनुभूति व हैप्पीनेस करिकुलम की आवश्यकता क्यूं?
डॉ सौरभ बताते हैं कि इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य खुशी की समझ बनाना है। विद्यार्थियों के लिए वर्तमान जीवन में और भविष्य में, उनके अपने जीवन में खुशी का क्या मतलब है? दूसरों के खुशीपूर्वक जीने में सहयोग का क्या मतलब है? क्या खुशी को मापा जा सकता है? क्या खुशी की तुलना की जा सकती है? दूसरों से तुलना में मिलने वाली खुशी और अपने अंदर से प्रकट होने वाली खुशी का विज्ञान क्या है? कहीं हम सुविधाओं को ही तो खुशी नहीं मान बैठे हैं? इन सब और इन जैसे और सवालों के वैज्ञानिक जवाब अपने अंदर से, अपने आसपास से ढूंढने के पाठ्यक्रम का नाम है ‘हैप्पीनेस करिकुलम’।
आज जब पूरी दुनिया में आतंकवाद, ग्लोबल वॉर्मिंग और भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के जरिए खोजने की कोशिश हो रही है। उस समय यह पाठ्यक्रम इस बात का प्रमाण बनेगा कि मानवीय व्यवहार की वजह से उत्पन्न समस्याओं का स्थायी समाधान केवल और केवल शिक्षा में संभव है। एक अच्छा विद्यालय भवन, आधुनिक कक्षाकक्ष, पढ़ाने के लिए आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियां नहीं हैं। यह सब अनिवार्य आवश्यकताएं हैं लेकिन शिक्षा की असली उपलब्धि है क्या? वर्तमान और भविष्य की संभावित समस्याओं का समाधान खोजकर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती हैं अथवा नहीं। यह पाठ्यक्रम इस संभावना की दिशा में बड़ा और महत्वपूर्ण कदम दिखाई देता है।
आज जब दुनिया के अनेक देशों में सोशल इमोशनल लर्निंग (SEL) के नाम से इस पाठ्यक्रम को लाया जा रहा है। या फिर लाने की तैयारी हो रही तो उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा यह पहल बहुत ही महत्वपूर्ण लगता है। मुझे विश्वास है कि हमारे प्रदेश के शिक्षकों और शिक्षाविदों की सुयोग्य टीम के माध्यम से यह पाठ्यक्रम विकसित होगा, संचालित भी होगा। अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करेगा।
ऐसे डिजाइन होगा पाठ्यक्रम
इस पाठ्यक्रम को तैयार करने की जिम्मेदारी विभाग के अधिकारी और शिक्षकों पर रहेगी। निदेशालय ने पिछले दिनों शिक्षकों के साथ एक वर्चुअल मीटिंग की है। आने वाले समय में यह वर्चुअल मीटिंग हर सप्ताह होने वाली है। इसके लिए तमाम शिक्षकों,अभिभावकों से फीडबैक लिया जा रहा है। उसके आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा, फिर पाठ्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए एक कमेटी काम करेगी, उसकी समीक्षा होगी। उसके बाद शासन के स्तर पर इसे लागू करने के निर्णय लिया जाएगा।
इन जिलों में लागू होगा पाठ्यक्रम
इस पाठ्यक्रम को सबसे पहले वाराणसी, अमेठी, लखनऊ, अयोध्या, गाजियाबाद, मेरठ, मुरादाबाद, देवरिया, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, प्रयागराज, चित्रकूट, झांसी, मथुरा और आगरा में लागू किया जाएगा। उसके बाद आगे की योजना बनाई जाएगी।