वैशाष माह में ही भगवान श्री राम का हुआ था अयोध्या में राज्याभिषेक : धर्माचार्य

रामानुज आश्रम में वैशाख मास की पूर्णिमा पुष्करणी दिवस पर भगवान पूजन अर्चन के पश्चात धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास ने भगवान श्री राम के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि पूर्व काल में त्रेता युग आने पर ब्रह्मा की 39 में पीढ़ी में सूर्यवंश में रघुवंश शिरोमणि प्रभु श्री राम माता कौशल्या और राजा दशरथ के घर अवतरित हुए। विश्वामित्र जी उन्हें लेकर वन गए जहां आप ने ताड़का का वध किया वहां से राजा जनक के घर जाकर आशुतोष भगवान के धनुष को तोड़कर अयोध्या सीता के साथ विवाह किया परशुराम जी से मुलाकात हुई अयोध्या में आने पर कुछ दिनों के पश्चात 27 वर्ष की आयु में श्री रामचंद्र जी के युवराज पद देने की तैयारी हुई तो कैकेई ने दो बार मांगा राम को वनवास और भरत को अयोध्या की गद्दी। इस प्रकार भगवान जानकी लक्ष्मण और सुमंत सहित वन की ओर चले। प्रथम रात्रि तमसा नदी के तट पर विश्राम किया दूसरे दिन जनपद प्रतापगढ़ के आज के ग्राम जगन्नाथपुर मोक्षदा ताल जगदीशपुर रामनगर ईश्वर पुर देवघाट नारायणपुर देवापुर सकली होते हुए सायं काल श्रृंगवेरपुर में विश्राम कर दूसरे दिन रास्ते में रात निवास करते हुए तीसरे दिन भरद्वाज आश्रम चौथे दिन ऋषि बाल्मीकि से मिलते हुए पांचवे दिन चित्रकूट पहुंचकर पर्णकुटी बनाया
रास्ते में 3 रात तक केवल जल पीकर रहे चौथे दिन फलाहार किया। ऋषियों को दर्शन दिया। अयोध्या से निकलने के पश्चात साढ़े 12 वर्षों तक वन में तथा पंचवटी में टिके रहे।
वहां शूर्पणखा के आगमन पर उसको लक्ष्मण जी ने कुरूप किया।
माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को वृंद मुहूर्त में जब श्रीराम और लक्ष्मण जी दोनों आश्रम से बाहर थे 10 मुख रावण ने सीता को अकेली पाकर हरण कर लिया ।माघ कृष्ण नवमी को रावण के घर में निवास करने वाली सीता की खोज करते हुए दोनों भाई राम और लक्ष्मण जटायु से मिले। आगे चलकर हनुमान जी के कृपा से सुग्रीव की मैत्री हुई बालिका वध हुआ। अनतंर दसवें महीने में संपाती के पता बताने पर हनुमान जी लंका पहुंचे रात्रि समाप्त होते-होते हनुमान जी ने सीता का दर्शन किया ।द्वादशी को हनुमान जी अशोक वृक्ष पर बैठे रहे ,त्रयोदशी को ही मेघनाथ ने ब्रह्मपास से हनुमान जी को बांध दिया। हनुमान जी ने लंका को जलाया और पुनः पूर्णिमा को महेंद्र पर्वत पर लौट आए। प्रतिपदा से 5 दिन तक रास्ते में रहकर मधुबन में आए। मधुबन का विध्वंस किया। सप्तमी को रामचंद जी की सेवा में पहुंचकर सब समाचार सुनाया।
अष्टमी को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जब विजय संवर्त मुहूर्त व्यतीत हो रहा था ठीक दोपहर के समय में रामचंद्र जी ने प्रस्थान किया। राम ने दक्षिण दिशा में जाने की प्रतिज्ञा करते हुए कहा की मैं समुद्र को लांघ कर राक्षस राज रावण का वध करूंगा ।7 दिनों तक समुद्र के तट पर सेना की छावनी पड़ी रही ।पौष शुक्ला प्रतिपदा से लेकर तृतीया तक सेना सहित श्री रामचंद्र जी सागर के तट पर रहे। चतुर्थी को विभीषण आकर के भगवान की शरणागति लिया। पंचमी को समुद्र पार करके ने के विषय में विचार हुआ।
उसके बाद 4 दिन तक श्री रामचंद्र जी ने समुद्र के किनारे उपवास किया, चौथे दिन समुद्र से वर प्राप्त हुआ। समुद्र पार उतारने का उपाय बताया। दशमी से सेतु बांधने का कार्य प्रारंभ हुआ । त्रयोदशी को पुल का कार्य पूरा हो गया। चतुर्दशी को सुबेल पर्वत पर पड़ाव डाला
पूर्णिमा से लेकर द्वतीया तक-तीन दिनों में सारी सेना समुद्र पार करके लंका पहुंच गई। तृतीया से लेकर 10वीं तक 8 दिन तक सेना पड़ी रही। एकादशी के दिन शुक और सारण इन दो मंत्रियों का आगमन हुआ। पौष मास कृष्ण पक्ष को सेना की गणना की गई। त्रयोदशी से लेकर अमावस्या तक 3 दिन लंका में रावण ने अपनी सेना संगठन की गणना किया।
माघ शुक्ल प्रतिपदा को रावण के दरबार में अंगद जी दूत बनकर गए। उस दिन से 7 दिनों तक अर्थात अष्टमी तक राक्षस और वानरो में घमासान युद्ध हुआ।माघ शुक्ला नवमी की रात में मेघनाथ ने राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध लिया ।दसमी को गरुड़ जी ने नागपाश से मुक्त कराया। माघ शुक्ला एकादशी से 2 दिन तक युद्ध बंद रहा। द्वादशी को ही हनुमान जी ने धूम्राक्ष का और त्रयोदशी को अकंपन का वध किया ।माघ शुक्ला चतुर्दशी से लेकर कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक 3 दिन में नील ने प्रहस्त का वध किया।
माघ कृष्णा द्वितीया से लेकर चतुर्थी तक 3 दिनों में श्री रामचंद्र ने तुमुल युद्ध करके रावण को रण स्थल से मार भगाया। पंचमी से अष्टमी तक रावण द्वारा कुंभकरण जगाया गया। कुंभकरण 4 दिन तक भोजन करता रहा। नवमी से 4 दिन तक कुंभकरण युद्ध किया और बहुत से वानरों को खा डाला अंत में श्री रामचंद्र जी के हाथ मारा गया ।अमावस्या के दिन लंका में उसके लिए शोक मनाया गया।
फाल्गुन कृष्ण तृतीया के दिन मेघनाथ पराजित हुआ। फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक इन दिनों में अतिकाय का वध हुआ ।अष्टमी तक 5 दिनों में पांच अन्य राक्षस मारे गए। फाल्गुन कृष्णा द्वितीय के दिन मेघनाथ पराजित हुआ। तीज से लेकर सप्तमी तक 5 दिन दवा दिलाने की के कारण युद्ध बंद रहा बन रहा। अष्टमी को रावण ने माया से युक्त सीता का वध किया।राम ने सेना के द्वारा सत्य का निश्चय किया। पुनः त्रयोदशी से फिर 5 दिनों में लक्ष्मण जी ने युद्ध करके मेघनाथ को मार डाला। अमावस्या के दिन वह युद्ध के लिए निकला चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर 5 दिन तक रावण लगातार युद्ध करता रहा। चैत्र मास नवमी को रावण द्वारा लक्ष्मण जी को शक्ति लगी। विभीषण की सलाह से हनुमान जी संजीवनी बूटी लाए और दवा पिलाई गई। दशमी को युद्ध बंद रहा रात में राक्षसों ने युद्ध आरंभ किया एकादशी के दिन रामचंद्र के पास मातालि नामक सारथी के साथ इंद्र का रथ आया ।
चैत्र शुक्ला द्वादशी से लेकर वैशाख मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तक 18 दिनों में रामचंद्र जी से रावण का विकराल द्वंद युद्ध हुआ। रावण मारा गया। अमावस्या के दिन रावण आदि राक्षसों के दाह संस्कार हुए।
इस प्रकार माघ शुक्ला द्वतीया से लेकर चैत्र कृष्ण चतुर्दशी तक 87 दिन के संग्राम में केवल 15 दिन युद्ध बंद रहा शेष 72 दिन युद्ध चालू रहा ।वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को श्री रामचंद्र जी रण भूमि में ही रहे। द्वतीया के दिन उन्होंने विभीषण का राज्याभिषेक किया ।तृतीया को सीता जी की शुद्वि हुई। देवताओं से वरदान प्राप्त हुआ दशरथ जी का आगमन हुआ ।सीता जी की पवित्रता के विषय में अनुमोदन प्राप्त हुआ।
वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को श्री रामचंद्र जी पुष्पक विमान पर बैठे और आकाश मार्ग से अयोध्यापुरी की ओर चल दिए। 14 वर्ष पूर्ण होने पर वैशाख शुक्ल पंचमी को रामचंद्र जी दल बल के साथ भारद्वाज आश्रम आए। पुष्पक विमान से निषादराज गुह को लेते हुए प्रतापगढ़ अवध के ऊपर से होकर नंदीग्राम पहुंचे। वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अयोध्या के राज्य का कार्यभार ग्रहण किया।
14 महीने 10 दिन तक सीता जी राम से अलग रहकर रावण के घर अशोक वाटिका में रहीं। इस प्रकार प्रभु श्री राम 27 वर्ष की आयु में बन गए 14 वर्ष वन में रहे ।42 वर्ष में राज्य कार्य प्रारंभ किया सीता जी 35 वर्ष की उस समय थी। 36 वर्ष की आयु में लव कुश पैदा हुए
12 वर्ष के लव कुश थे तभी सीता जी 48 वर्ष की आयु में पृथ्वी में नैमिषारण्य में अश्वमेध यज्ञ के समय समाहित हो गयी। प्रभु श्री राम 7 वर्ष बड़े थे इसलिए उस समय उनकी याद 55 वर्ष थी। 11000 वर्षों तक प्रभु श्रीराम ने राज्य किया। उक्त कथा स्कंद पुराण के विराम ब्राह्मखंड धर्मारण्य महात्मय के अंतर्गत श्री रामचंद्र जी के संपूर्ण चरित्र के वर्णन में है ।
धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास रामानुज आश्रम संत रामानुज मार्ग प्रतापगढ़

धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास

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