भगवान का स्मरण ही सर्वोच्चकृष्ट संपत्ति है:– धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास प्रतापगढ़ रामानुज आश्रम
।। श्रीमते रामानुजाय नम:।।
विपदः सन्तु नः शश्वत् तत्र तत्र जगद्गुरो।
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्।।
–श्रीमद्भा. 1/8/25
माता कुन्ती जी भगवान् से प्रार्थना करती हैं–
‘हे जगद्गुरो! हम पर सदा विपत्तियाँ ही आती रहें, क्योंकि आपके दर्शन विपत्ति में ही होते हैं और आपके दर्शन होने पर फिर इस संसार के दर्शन नहीं होते अर्थात् मनुष्य आवागमन से रहित हो जाता है।’ ठीक ही कहा गया है –
विपदो नैव विपदः सम्पदो नैव सम्पदः।
विपद्विस्मरणं विष्णोः सम्पन्नारायणस्मृतिः।।
‘विपत्ति यथार्थ में विपत्ति नहीं है, लौकिक सम्पत्ति भी यथार्थ में सम्पत्ति नहीं है। भगवान् का विस्मरण होना ही विपत्ति है और उनका स्मरण बना रहे यही सबसे बड़ी सम्पत्ति है।’
माता कुन्ती को भगवान् का विस्मरण कभी हुआ नहीं, अतः वे सदा सुख में ही रहीं।
दुनिया की विपत्ति कोई विपत्ति नहीं है। दुनिया की सम्पत्ति कोई सम्पत्ति नहीं है। भगवान् का विस्मरण ही विपत्ति है। भगवान् का स्मरण ही सर्वोत्कृष्ट सम्पत्ति है। यह समझ करके कुन्ती ने विपत्ति का वरदान माँगा है। दुनिया में कोई दूसरा दृष्टान्त नहीं है, जिसने विपत्ति का वरदान माँगा हो । एकमात्र कुन्ती का यह दृष्टान्त है जिसने विपत्ति का वरदान माँगा। कुन्ती बड़ी तत्त्वविदुषी है। वह कहती है– हे भगवन! आपका आविर्भाव क्यों होता है?
तथापरमहंसानामुनीनाममलात्मनाम्।
भक्तियोगविधानार्थ कथं पश्येम हि स्त्रियः।।
श्रीमद्भाग, 3/8/20
“भगवन्! जो अमलात्मा परमहंस मुनि हैं, उनकी भक्ति योग का विधान करने के लिए आपका अवतार होता है; हम स्त्रियाँ इस रहस्य को कैसे समझ सकती हैं।”
अर्थात परमहंसों के प्रत्येकचैतन्याभिन्न विशुद्ध ब्रह्म के अपरोक्ष साक्षात्कार को भक्ति योग द्वारा सरस एवं सुशोभित बनाकर उन्हें श्रीपरमहंस बनाने के लिये आपका प्रादुर्भाव होता है। वेदान्तवेद्य, अदृश्य, अग्राह्य, भगवान् अपनी अचिन्त्य दिव्यलीलाशक्ति से परम मनोहर, सगुण, साकार सच्चिदानन्दघनरूप में व्यक्त होकर अमलात्मा परम-हंसों के भजनीय बनकर उनके भक्तियोग के विधायक बनते हैं। ऐसे ही अन्यान्य अनेक प्रयोजन भगवान् के अवतार हैं।
साभार आचार्य रमेशप्रपन्नाचार्य