महाशिवरात्रि की 4 कथाएं – पूरी रात आपको जगाए रखने के लिए (कहानी 2)

कहानी 2 : कैसे बने कुबेर शिव के महानतम भक्त।

सद्ग़ुरु: कुबेर यक्षों के राजा थे। यक्ष बीच का जीवन होते हैं, वे ना यहाँ के जीवन में होते हैं और ना ही वो पूरी तरह से, जीवन के बाद वाली स्थिति में होते हैं। कहानी कुछ इस तरह है कि रावण ने कुबेर को लंका से निकल दिया और कुबेर को मुख्यभूमि की और पलायन करना पड़ा। अपना राज्य और प्रजा को खोने की निराशा में, उसने शिव की पूजा करना शुरू की – और एक शिव भक्त बन गया।

शिव जी ने दया भाव दिखाते हुए, उसे एक अन्य राज्य और संसार का सारा धन दे दिया , इस तरह कुबेर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बन गया । धन मतलब कुबेर – यह कुछ इस प्रकार देखा जाने लगा। कुबेर, शिव जी का महान भक्त बन गया , परंतु जब भक्त को यह लगने लगे कि वो सबसे महान भक्त है, तो समझ जाएँ के सब खोने वाला है। कुबेर को लगने लगा था कि वो शिव को इतना कुछ अर्पित करता है तो वो एक महानतम भक्त है । और बेशक शिव जी ने चढ़ावे में से विभूति के अलावा कभी कुछ नहीं छुआ। पर कुबेर ख़ुद को महान समझने लगा क्योंकि वो शिव जी को इतना कुछ चढ़ावे के रूप में भेंट करता था ।

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एक दिन कुबेर शिव के पास गए और कहा “मैं आप के लिए क्या कर सकता हूँ? मैं आप के लिए कुछ करना चाहता हूँ ।” शिव जी ने कहा “तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? कुछ भी नहीं ! क्योंकि मुझे किसी चीज़ की आवश्यकता ही नहीं है। मैं ठीक हूँ। परंतु मेरा बेटा” उन्होंने गणपति की और इशारा करते हुए कहा, “ये लड़का हमेशा भूखा रहता है, इसे अच्छे से खिला दो।”

“यह तो अत्यंत सरल है” कह कर कुबेर गणपति को अपने साथ भोजन के लिए ले गया। उसने गणपति को खाना खिलाना शुरू किया और वो खाते गए और खाते ही गए। कुबेर ने सैकड़ों रसोइयों की व्यवस्था की और प्रचुर मात्रा में खाना बनाना शुरू किया। उन्होंने यह सारा भोजन गणपति को परोसा और वे खाते रहे।

कुबेर चिंतित हो उठे और कहा “रूक जाओ, अगर तुम इतना खाओगे तो तुम्हारा पेट फट जाएगा।” गणपति ने कहा “आप उसकी चिंता मत करो। देखिए मैंने एक सांप को एक कमर पेटी के रूप में बांध रखा है। तो आप मेरे पेट की चिंता ना करें। मुझे भूख लगी है । मुझे खाना खिलाएँ। आप ही ने कहा था कि आप मेरी भूख मिटा सकते हैं !“

कुबेर ने अपना सारा धन खर्च कर दिया। कहते हैं कि कुबेर ने दूसरे लोकों से भी भोजन मँगवा के गणपति को खिलाया। गणपति ने सारा भोजन खाने के बाद भी कहा “मैं अभी भी भूखा हूँ, मेरा भोजन कहाँ है? ” तब कुबेर को अपने विचार के छोटेपन का एहसास हुआ और उसने शिव के सामने झुकते हुए कहा “मैं समझ गया, मेरा धन आप के सामने एक तिनके के समान भी नहीं है, जो आप ने मुझे दिया उसी का कुछ अंश आप को वापिस दे कर मैंने खुद को एक महान भक्त समझने की गलती की” और इस क्षण के बाद उसके जीवन ने एक अलग ही दिशा ले ली।

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