भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आमलकी मनुष्य के सब पापों से मुक्त कराने वाला है
20 मार्च दिन बुधवार को आमल की रंगभरी एकादशी है।
धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले महाभाग धर्म नंदन फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। इसका पवित्र व्रत विष्णु लोक की प्राप्ति कराने वाला है।
राजा मांधाता के पूछने पर वशिष्ठ जी ने कहा था। महाभाग सुनो पृथ्वी पर अमल की उत्पत्ति किस प्रकार हुई? यह बताता हूं। आमलकी महान वृक्ष है जो सब पापों का नाश करने वाला है ।भगवान श्री विष्णु के थूंकने पर उनके मुख से चंद्रमा के समान कांतिमान एक बिंदु प्रकट हुआ वह पृथ्वी पर गिरा उसी से आमल आंवले का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ था।यह वृक्षों का आदिभूत कहलाता है।
देवता, दानव ,गंधर्व, यक्ष, राक्षस ,नाग तथा निर्मल अंतःकरण वाले महर्षियों को ब्रह्मा जी ने जन्म दिया।उनमें से देवता और ऋषि उस स्थान पर आए जहां विष्णुप्रिया आमलकी का वृक्ष था उसे देखकर देवताओं को बड़ा विश्मय हुआ। वह एक दूसरे पर दृष्टिपात करते हुए उत्कंठा पूर्वक उस वृक्ष को देखने लगे और सोचने लगे कि ऐसा वृक्ष तो पूर्व कल्प की ही भांति है। जिससे हम सब के सब परिचित हैं, किंतु इस वृक्ष को हम नहीं जानते। उसी समय आकाशवाणी हुई महर्षियों यह सर्वश्रेष्ठ आमल का वृक्ष है ।जो विष्णु को प्रिय है इसके स्मरण मात्र से गोदान का फल मिलता है। इसलिए सदा प्रयत्नपूर्वक आमलकी का सेवन करना चाहिए। यह सब पापों को हरने वाला वैष्णो व्रत बताया गया है। इसके मूल में विष्णु ऊपर ब्रह्मा स्कंध में परमेश्वर भगवान रुद्र शाखाओं में मुनि टहनियों में देवता पत्तों में बसु फूलों में मरुद गण तथा फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं।
ऋषि बोले हम लोग आप को क्या समझाएं आप कौन हैं देवता हैं या कोई और हमें ठीक-ठीक बताइए ।आकाशवाणी हुई जो संपूर्ण भूतों के करता जिसे विद्वान पुरुष कठिनता से देख पाते हैं वही सनातन विष्णु मैं ही हूं। श्री विष्णु का यह वचन सुनकर ब्रह्माकुमार महर्षियों के नेत्र आश्चर्यचकित हो गए ऋषि बोलते हैं। संपूर्ण भूतों के आत्मा परमात्मा को नमस्कार है। इस प्रकार भगवान श्रीहरि को संतुष्ट किया।
श्री कृष्ण बोले महर्षियों फागुन शुक्ल पक्ष मैं यदि पुण्य नक्षत्र से युक्त द्वादशी हो तो वह महान पुण्य देने वाली और बड़े-बड़े पाप को नाश करने वाली होती है ।उसमें जो विशेष कर्तव्य है उसको सुनो आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष के पास जाकर वहां रात्रि में जागरण करना चाहिए ।
मुनियों के पूछने पर भगवान नारायण ने कहा एकादशी को प्रातः काल दंतधावन करके संकल्प करें एकादशी का निराहार रहकर व्रत करूंगा दूसरे दिन भोजन करूंगा। आप मुझे शरण में रखें ऐसा नियम लेने के बाद पतित, चोर, पाखंडी, दुराचारी ,मर्यादा भंग करने वाले मनुष्यों से वार्तालाप ना करें ।आंवले के वृक्ष के पास कलश की स्थापना करके कलश में पंचरत्न, दिव्य गंध, हलदी छोड़ दे। श्वेत चंदन से उसको अर्चित करें, कंठ में फूल की माला पहनाए ।कलश के ऊपर एक पात रखकर उसे दिव्य खीलो से भर दे। उसके ऊपर स्वर्ण के परशुराम जी की स्थापना करें। विशोकाय नमः कह के उनके चरणों की ,विश्वरूपणे नमः कहकर दोनों घुटनों की, उपराय नमः से जांघों की, दामोदराय नमःसे कटिभाग की, पद्मनाभाय नमः से उदर भाग की, श्रीवत्स धारणे से वक्षस्थल की, चक्रिणे नमःसे वांयी वांहकी ,गदिने नम: से दाहिने वांह की ,वैकुठांय नम: से कंठ की, यशमुखाय नम: से मुख की, विशोकनिधये नमः से नासिका की, वासुदेवाय नमः से नेत्रों की, वामनाय नमः से ललाट की, सर्वातमने नमः से सम्पूर्ण अगों की पूजा करे।ये ही की संपूर्ण पूजा के मंत्र हैं ।
प्रार्थना करते हुए कहे कि हे जमदग्नि नंदन श्री विश्वरूप परशुराम जी आपको नमस्कार है आंवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अर्घ्य है ग्रहण कीजिए ।इस प्रकार से आमल के वृक्ष की परिक्रमा 108 बार या28 बार परिकरमा करें। सवेरा होने पर श्री हरि की आरती करें। ब्राह्मणों की पूजा कर उन्हें सामग्री निवेदन करें ।आमलकी के वृक्ष का स्पर्श करके उसकी प्रदक्षिणा करें तदंतर कुटुंबियों के साथ बैठकर स्वयं भी भोजन करें। ऐसा करने से उपवास पूर्ण होता है ।यह सब उपयुक्त विधि के पालन से शुभ लाभ फल की प्राप्ति होती है।
वशिष्ठ जी कहते हैं महाराज तभी भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। तत्पश्चात महर्षियों ने उक्त व्रत का पालन किया। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आमलकी मनुष्य के सब पापों से मुक्त कराने वाला है।
ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास कृपापात्र श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जीयर स्वामी मठ जगन्नाथ पुरी। रामानुज आश्रम, संत रामानुज मार्ग, शिवजी पुरम प्रतापगढ़।