दोस्त दोस्त ना रहा………! पार्श्व गायक मुकेश, राज कपूर की ‘आत्मा’ थे| ९७ वां जन्मदिवस
हिंदी सिनेमा में प्रसिद्द ए के सहगल से सबसे ज्यादा प्रभावित , अपनी एक अलग शैली के गायन के लिए पहचान रखने वाले मुकेश चंद माथुर उर्फ मुकेश ने जब पहली बार १९४५ में फिल्म ‘पहली नज़र ‘ में पहला गाना ‘दिल जलता है तो जलने दो ………’ गाया तो सबका ध्यान पानी ओर खिंच लिया | बस यही से शुरू हो गयी गायन की सुहानी सफर ….
कैसे शुरू हुआ गायन का सफर?
२२ जुलाई , १९२३ को पिता जोरावर चंद माथुर और माता चंद रानी के घर जन्मे मुकेश चंद माथुर बचपन से ही फ़िल्मी दुनिया में आना चाहते थे | संगीत की पहली सीख इन्हें अपनी बड़ी बहन से मिली जो घर में ही गायन का अभ्यास किया करती थी | एक बार एक शादी के कार्यक्रम में इनके एक रिश्तेदार मोतीलाल ने इन्हें गाते हुए सुना और अपने साथ मुंबई लेकर चले गए | अपने यहाँ ही इनके रहने का व्यवस्था कर दिए | १९४१ में अपनी फिल्म ‘निर्दोष ‘ में इन्होने मुख्या कलाकार की भूमिका अदा की | लेकिन १९४५ में गायन में पहला ब्रेक फिल्म – पहली नजर में गाना दिल जलता है तो जलने दो जलने दो ….. से मिला।
शादी और अवार्डो की झड़ी!
४० के दशक में ए के सहगल इनसे अत्यधिक प्रभावित हुए थे | कम समय में ही एक स्थापित पार्श्व गायक , भजन , गजल , शाष्त्रीय गायन के रूप में पहचान रखने वाले मुकेश साहब ने १९४६ में मात्र २३ वर्ष की किशोरावस्था में ही शादी कर लिए | इनकी पत्नी सरला ने भी इनका बखूबी साथ दिया | सबसे ज्यादा बार इन्होने दिलीप कुमार के लिए फिल्माए गए गानों को आवाज दिए |
पुरष्कार
१९५९ में फिल्म अनाडी फिल्म में जब उन्होंने एक सदाबहार गीत ‘सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी….’ गाया तो सर्वश्रेठ पार्श्व गायन का फिल्मफेयर पुरष्कार से नवाजे गए | फिर १९७४ में फिल्म रजनीगन्धा में ‘कई बार यूँ ही देखा है….’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरष्कार जीते |
सदाबहार गाने
मेरा जूता है जापानी…, मैं पल दो पल का शायर हूँ ….., ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना…., दोस्त दोस्त ना रहा……, जाने कहाँ गए वो दिन…., एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल…., एक प्यार का नगमा….., सावन का महीना.. पवन करे शोर …. और भी अनगिनत गाने हैं जो दिल, ह्रदय और मन को मत्रमुग्ध करते हैं| ५० के दशक में राज कपूर की आवाज कहे जाने पर राज कपूर ने कहा था- “मैं तो बस शरीर हूँ , मेरी आत्मा तो मुकेश है|”
अंतिम गीत और दुनिया से अलविदा!
फिल्म कभी- कभी में गाया मशहूर गाना जो आज भी सबके दिलो को पर राज करता है , कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है….. इनका अंतिम गीत था| जो १९७६ में आया था और इसी के साथ मुकेश साहब अपने कर्णप्रिय आवाज को इस भौतिक दुनिया में छोड़कर हमेशा के लिए अलविदा कह गए |
आज मुकेश साहब के ९७ वें जन्मदिवस पर यूपी एक्सप्रेस न्यूज़ की पूरी टीम के तरफ से हार्दिक शुभकामनायें और नमन!