गोविंद के चरणों में निष्काम प्रीति ही सर्वोत्तम धर्म है:– स्वामी राघवाचार्य

प्रतापगढ़ करमाही ग्राम में श्री संप्रदाय के परम विद्वान संत जगदगुरु रामानुजाचार्य श्री श्री 1008 स्वामी श्री राघवाचार्य जी महाराज पीठाधीश्वर श्री धाम मठ श्री अयोध्या जी के मुखारविंद से श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ कथा की अमृत वर्षा हो रही है। आपने कहा कि संतों की सन्निधि जीवन को स्वर देती है संतों का चरित्र जीवन को परिवर्तित कर देता है। श्रीमद्भागवत कथा जो ब्राह्मण हो, विरक्त हो, वैष्णव हो उसी से श्रवण करना चाहिए। सूत जी शौनकादि ऋषियों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं। मानव के लिए परम धर्म क्या है ? श्री कृष्ण के चरणों में प्रीति होना, कन्हैया के चरणों में प्रीति होना निष्काम प्रेम ही सर्वोत्तम धर्म है।


निंदा कभी किसी की मत करो, निष्ठा हमेशा एक में करो, जैसे वृक्ष की जड़ में हम पानी डालते हैं उससे ऊपर पत्ते हरे-भरे हो जाते हैं। इसी तरह से जितने भी देवी देवता हैं सब का मूल तो केवल भगवान श्री कृष्ण ही हैं। इसलिए मन को गोविंद के चरणों में लगाओ निंदा किसी की मत करो। भगवान का नाम अजन्मा है तो प्रभु ने जन्म कैसे लिया। प्रभु का जन्म नहीं होता प्रभु का अवतार होता है। परमात्मा ने भिन्न-भिन्न अवतार लिए जिसमें 24 अवतारों में सनक सनदंन सनातन सनत कुमार सहित कल्की अवतार 24 अवतार हैं।


राम और कृष्ण दोनों एक ही है दोनों में कोई अंतर नहीं है। किसी भी उपाय से मन को गोविंद के चरणों में लगाइए, इसीलिए वेदव्यास जी ने भागवत ग्रंथ लिखा। विपत्ति को विपत्ति नहीं कहा जाता संपत्ति को संपत्ति भी नहीं कहते हैं गोविंद को भूल जाना ही सबसे बड़ी विपत्ति है और कन्हैया की याद बनी रहे यही सबसे बड़ी संपत्ति है। यदि शिष्य भाव से आप कुछ प्राप्त करना चाहेंगे तो निश्चित मिलेगा युधिष्ठिर को भगवान श्री कृष्ण जो उपदेश रात्रि भर बैठ कर दिया था वही उपदेश अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया अर्जुन की समझ में आ गया क्योंकि उनके अंदर शिष्य का भाव था। शिक्षक तथा गृहस्थ को आलसी नहीं होना चाहिए। पर स्त्री गमन करना बहुत ही दुष्कर्म कार्य है। जो सांस निकलकर गयी लौट कर नहीं आएगी। इसलिए प्रत्येक परिस्थिति में चलते-फिरते उठते बैठते रोते हंसते नाचते गाते खाते पीते हर स्थिति में गोविंद को याद करो। मन को बस में करो संग हमेशा संतों का विद्वानों का कीजिए जो भवसागर से पार उतारने की एक नौका हैं। ममता ही बंधन का कारण है इसलिए प्रेम तो करो लेकिन मोह मत करो। मोह करने के कारण भरत जी को हिरण की योनि में जाना पड़ा।


प्रहलाद चरित्र में नवधा भक्ति का बड़ा ही सुंदर वर्णन आपने किया। अमल भक्ति से श्री कृष्ण की प्राप्ति होगी विशुद्ध भक्ति से कृष्ण मिलेंगे मदभक्ति मांगने वाली भक्ति को सकाम भक्ति कहते हैं। इसलिए निष्काम भक्ति करना चाहिए। निष्काम भक्ति के लिए श्री संप्रदाय के पूज्य आल्वारों ने बहुत ही सुंदर उपदेश दिए। शेष भगवान रामानुज स्वामी के रूप मे जीवों के कल्याण के लिए अवतार लिया। श्रीमद्भागवत का श्रवण जीवन पर्यंत करना चाहिए इसी में जीव का कल्याण है।
इस अवसर पर जनपद प्रतापगढ़ के श्री संप्रदाय के भक्तों की ओर से धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास ने आपको माल्यार्पण कर अंगवस्त्रम से बहुमान करते हुए श्री जगन्नाथ पुरी से लाया हुआ भगवान श्री जगन्नाथ जी का महाप्रसाद प्रदान किया।मुख्य यजमान विजय नारायण सिंह एवं श्रीमती अमृता सिंह, श्रीनारायण सिंह, इं ललित नारायण सिंह, डां मोहिनी सिंह, दुर्गेश सिंह ,प्रो उमेश, डॉक्टर भूपेश सिंह, गिरजेश सिंह, शैलेश सिंह ,राहुल ,देवेंद्र ,प्रशांत ,देवांश, दिव्यांशी, अथर्व ,अंशुमन, आराध्या ,आर्यमन, सानवी, मानविक, आर्निका, मिसिका, घृति सहित उदासीन अखाड़ा के महंथ स्वामी भरतदास, प्रदेश सरकार के मंत्री मंयेकेश्वर शरण सिंह, महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री कृपा शंकर सिंह, विधायक राकेश प्रताप सिंह , ऋषभ सिंह ,दिनेश शर्मा,कथा के आयोजक डॉक्टर महेंद्र सिंह एमएलसी पूर्व मंत्री जल शक्ति भक्तों का श्रद्धा पूर्वक स्वागत करते हुए नजर आए।

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