जिसमें संतोष नहीं वही वास्तव में दरिद्र:–वियोगी महाराज

प्रतापगढ़ : सुदामा गरीब तो थे, पर दरिद्र नहीं थे। वास्तव में दरिद्र वह है, जिसमें अधिक पाने की लालसा बनी रहे। सुदामा ने भगवान कृष्ण का मित्र होने के बाद भी उनसे कुछ नहीं मांगा। इससे बड़ा संतोषी कौन हो सकता है। यह बात गोकुल लान मीरा भवन में भागवत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास पं. अवध नारायण शुक्ल वियोगी जी महराज ने कही। उन्होंने कहा कि भागवत महापुराण पापों को मिटाने वाला, हृदय में भगवान की भक्ति जगाने वाला व भवसागर से तारने वाला महापुराण है। भगवान कृष्ण का ही स्वरूप है। इस अवसर पर प्रख्यात कवि डा. श्याम शंकर शुक्ल श्याम, सुनील प्रभाकर व राज नारायण राजन ने धार्मिक प्रसंगों पर काव्य पाठ किया।


कथा व्यास को भगवान श्री जगन्नाथ जी का महाप्रसाद अंगवस्त्रम एवं माल्यार्पण करके अपनी शुभकामना व्यक्त करते हुए धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडेय अनिरुद्ध रामानुजदास ने कहा कि सत्य की पहचान ही जीवन की सार्थकता है। कथा को सुनें तो उसे जीवन में उतारें। प्रमुख समाजसेवी रोशनलाल ऊमरवैश्य, प्रधानाचार्य डा. जय शंकर त्रिपाठी, समाजसेवी राम कुमार ओझा, पूर्व खंड विकास अधिकारी विधि देव शुक्ला, शारदा प्रसाद शुक्ल, वरिष्ठ अधिवक्ता केपी चतुर्वेदी, पूर्व बीडीसी सुरेश पांडेय, भगवान बख्स सिंह व ओम दत्त शुक्ल आदि मौजूद रहे। लगन व भाव से आयोजन में जुटे रहे सौरभ शुक्ल, प्रखर शुक्ल, शिखर व उत्कर्ष आदि को सम्मानित किया गया। पूजन में आचार्य संदीप, सुशील कुमार ओझा रमे रहे।

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