जो जीवन की परीक्षाओं में खरा उतरता है, वही सच्ची सफलता पाता है
धैर्य और अहंकार की परीक्षा
गाँव के बाहरी छोर पर स्थित एक छोटे से आश्रम में महात्मा वसुदेव अपने शिष्यों को जीवन के गूढ़ रहस्यों की शिक्षा देते थे। दूर-दूर से लोग उनकी विद्या और अनुभव का लाभ लेने आते थे। एक दिन, एक उत्साही युवक आनंद उनके पास आया और बोला, “गुरुदेव, मैंने सुना है कि जीवन हमें सिखाने के लिए सुख और दुःख भेजता है, पर मैं इसे भली-भाँति समझ नहीं पाया। क्या आप मुझे इस विषय पर मार्गदर्शन देंगे?”
महात्मा वसुदेव मुस्कुराए और बोले, “बिलकुल, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। यह कहानी दो मित्रों, राज और विजय की है, जिनका जीवन दो अलग-अलग दिशाओं में आगे
धैर्य की परीक्षा – विजय की कहानी
विजय एक साधारण किसान था, जो कड़ी मेहनत और ईमानदारी में विश्वास रखता था। उसके पास बहुत अधिक धन नहीं था, लेकिन उसका मन शांत और संतोषी था। एक वर्ष भयंकर अकाल पड़ा। उसकी फसलें सूख गईं, खाने के लिए अन्न तक नहीं बचा। कई किसानों ने हिम्मत हार दी, लेकिन विजय ने अपने धैर्य को बनाए रखा।
उसने अपनी बची-खुची फसलों से बीज बचाकर अगली फसल की तैयारी की। वह रोज़ सूरज निकलने से पहले खेतों में जाता, मेहनत करता और भगवान से प्रार्थना करता। गाँव वाले उसका उपहास उड़ाते और कहते, “इतने कठिन समय में तुम्हारी मेहनत व्यर्थ जाएगी।” लेकिन विजय ने अपना धैर्य नहीं खोया।
कुछ महीनों बाद बारिश हुई, और उसकी मेहनत रंग लाई। विजय की फसल इतनी अच्छी हुई कि उसने न केवल अपनी हालत सुधारी, बल्कि गाँव के कई गरीब लोगों की भी मदद की। इस कठिन परीक्षा के दौरान उसने सीखा कि जीवन में दुःख इसलिए आते हैं ताकि मनुष्य का धैर्य परखा जा सके।
अहंकार की परीक्षा – राज की कहानी
राज एक धनी व्यापारी था। वह सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचा और उसे अपनी समृद्धि पर गर्व था। उसके पास नौकर-चाकर, सुंदर महल और अकूत धन था। धीरे-धीरे, वह अपने मित्रों और परिवार को तुच्छ समझने लगा और दूसरों से रूखा व्यवहार करने लगा। उसे लगता था कि उसकी समृद्धि हमेशा बनी रहेगी।
एक दिन, व्यापार में बड़ा नुकसान हुआ। उसे लगा कि यह अस्थायी है, लेकिन धीरे-धीरे उसकी संपत्ति घटने लगी। उसके मित्र, जो उसके ऐश्वर्य के कारण उसके आसपास रहते थे, उसे छोड़कर चले गए। धीरे-धीरे उसे एहसास हुआ कि वह अकेला पड़ गया है।
वह महात्मा वसुदेव के पास पहुँचा और बोला, “गुरुदेव, जब मैं समृद्ध था, तो सब मेरे साथ थे। अब जब मेरा भाग्य बदल गया है, तो कोई मेरा साथ नहीं दे रहा। क्यों?”
महात्मा बोले, “बेटा, सुख मनुष्य के अहंकार की परीक्षा लेता है। जब तुम संपन्न थे, तब तुमने विनम्रता छोड़ दी और अपने अहंकार में डूब गए। सुख ने तुम्हारा परीक्षण किया, लेकिन तुम उसमें असफल रहे। यही कारण है कि जब तुम्हारा सुख चला गया, तो तुम्हारे साथ कोई नहीं रहा।”
राज को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने अपने व्यवहार को बदला और अपने शेष जीवन को सादगी और सेवा में व्यतीत किया।
धैर्य और अहंकार की परीक्षा
महात्मा वसुदेव ने आनंद की ओर देखा और बोले, “बेटा, जीवन में दुःख आता है तो धैर्य की परीक्षा होती है, और सुख आता है तो अहंकार की। जो इन परीक्षाओं में सफल होता है, वही सच्चे अर्थों में जीवन को समझ पाता है।”
आनंद को अपने उत्तर मिल गए थे। वह समझ गया था कि सुख और दुःख केवल परिस्थितियाँ नहीं, बल्कि जीवन के शिक्षक हैं, जो मनुष्य की वास्तविकता को परखते हैं।