कभी चेतावनी, कभी फटकार; केजरीवाल पर 25 मिनट तक फैसला, जानें जज ने क्या-क्या कहा
नई दिल्ली। दिल्ली (Delhi)के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal)की याचिका (petition)पर मंगलवार को उच्च न्यायालय (high Court)ने फैसला सुनाया। इस दौरान पीठ ने कहा, कानून की नजर में आम नागरिक व मुख्यमंत्री समान हैं। जांच एजेंसी के पास साक्ष्य हैं। उसके आधार पर केजरीवाल की गिरफ्तारी न्यायसंगत है। रिमांड पर लेकर पूछताछ करना भी जरूरी था। न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा की पीठ ने दोपहर बाद तीन बजकर 40 मिनट पर फैसला सुनाना शुरू किया। पीठ ने 25 मिनट तक खुद फैसला पढ़कर सुनाया। पीठ ने अपने फैसले के कुछ हिस्सों को हिंदी में भी समझाया।
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मामला सिर्फ केजरीवाल की गिरफ्तारी व रिमांड का नहीं है, बल्कि आम आदमी को यह समझाना भी जरूरी है कि गिरफ्तारी व रिमांड वास्तविकता में क्या है। पीठ ने कहा कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है और अदालतों का सरोकार संवैधानिक नैतिकता से, न कि राजनीतिक नैतिकता से। ऐसे में जब आरोप लगाने पर एक आम आदमी को तत्काल गिरफ्तार कर लिया जाता और पूछताछ के लिए उसे रिमांड पर लिया जाता है तो इस मामले में मुख्यमंत्री होने का लाभ केजरीवाल को नहीं दिया जा सकता है।
पीठ ने कहा- यह जमानत याचिका नहीं
पीठ ने कहा कि वर्तमान याचिका जमानत के लिए नहीं है बल्कि ईडी की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए दायर की गई है। इस तरह की याचिका अवैध है और उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है। इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता। जांच एजेंसी पूछताछ करना चाहती थी। इसलिए विशेष अदालत ने विधि अनुसार केजरीवाल की रिमांड ईडी को दी। इसमें भी कोई खामी नहीं है।
यह है मामला
यह मामला वर्ष 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति तैयार करने और क्रियान्वित करने में कथित भ्रष्टाचार तथा धनशोधन से संबंधित है। संबंधित नीति को बाद में रद्द कर दिया गया था। धनशोधन रोधी एजेंसी की दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा देने से उच्च न्यायालय के इनकार के कुछ ही घंटे बाद ईडी ने केजरीवाल को 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार कर लिया था। ईडी रिमांड की अवधि समाप्त होने पर निचली अदालत में पेश किए जाने के बाद केजरीवाल को एक अप्रैल को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था।
आप के राष्ट्रीय संयोजक ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया और कहा कि यह लोकतंत्र, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव और समान अवसर सहित संविधान की बुनियादी संरचना के विपरीत है। ईडी ने याचिका का विरोध किया और दलील दी कि केजरीवाल आगामी चुनाव के आधार पर गिरफ्तारी से छूट का दावा नहीं कर सकते क्योंकि कानून उन पर और आम आदमी पर समान रूप से लागू होता है।
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पूछताछ की दलील खारिज की
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रवर्तन निदेशालय केजरीवाल से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए भी पूछताछ कर सकता है। अदालत ने कहा कि यह तय करना आरोपी का काम नहीं है कि जांच कैसे की जानी है। यह आरोपी की सुविधा के मुताबिक नहीं हो सकता। जांच एजेंसी अपने हिसाब से इस पर निर्णय करती है, क्योंकि यहां याचिकाकर्ता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं तो इसका यह कतई मतलब नहीं है कि जांच एजेंसी व अदालतें उनके मुताबिक निर्णय करेंगी। यहां कानून का शासन है।
केजरीवाल को निदेशक, आप को कंपनी माना
फैसले के वक्त पीठ ने कहा कि ईडी की शिकायत के मुताबिक, आम आदमी पार्टी की तुलना एक कंपनी से और अरविंद केजरीवाल की तुलना उसके निदेशक के रुप में की गई है। पीठ ने यह स्पष्ट करते हुए कि वर्तमान मामला केंद्र व केजरीवाल के बीच नहीं, बल्कि केजरीवाल और ईडी के बीच है। पीठ ने कहा कि राजनीतिक विचारों और समीकरणों को अदालत के समक्ष नहीं लाया जा सकता क्योंकि वे कानूनी कार्यवाही के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।
पीठ ने चुनावी बॉन्ड को लेकर भी प्रतिक्रिया दी
याचिका में केजरीवाल ने कई आधारों पर अपनी रिहाई की मांग की थी, जिसमें यह भी शामिल था कि सरकारी गवाह बने राघव मगुंटा और सरथ रेड्डी के बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि रेड्डी ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को दान भी दिया था। इस पर पीठ ने कहा कि उनकी राय में चुनाव लड़ने के लिए टिकट कौन देता है या चुनावी बॉन्ड कौन खरीदता है और किस उद्देश्य से देता है, यह अदालत की चिंता नहीं है।
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