हिंदी दिवस : ‘कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी… हिंदी हमारी जन-जन की भाषा, भारत की आशा

‘कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी…’ यह कहावत भारत जैसे बहुरंगी और विविध देश के लिए शब्दस: सटीक बैठती है। सैकड़ों बोलियों और भाषा वाले इस देश में हिंदी का स्थान अद्वितीय है। हजारों साल पुरानी इस भाषा ने न केवल पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया है बल्कि आजादी की लड़ाई के दिनों में सबसे मुखर और मजबूत सम्पर्क सूत्र के रूप में भी काम किया। धीरे-धीरे हिंदी पुष्पित और पल्लवित होती गई और आज दुनिया की चौथी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा बन गई है। अंग्रेजी, स्पेनिश और मंदारिन के बाद हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में ही करीब 77 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते, समझते और पढ़ते हैं। पूरी दुनिया में ”हिंदी” हमारी पहचान बन चुकी है।

हिंदी दिवस मनाने का क्या है उद्देश्य ?

चाहे सोशल मीडिया हो या फिर चाहे नई तकनीक आज हर एक में हिन्दी का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन हिन्दी की राह में चुनौतियां भी बहुत हैं। हिंदी का ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार हो इसके लिए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा के विकास के लिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है। इसीलिए 14 सितंबर को सभी सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।

हिंदी देश को एकता की डोर में बांधने का करती है काम

हिंदी देश को एकता की डोर में बांधने का काम करती है। आजादी की लड़ाई में जब पूरा देश अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहा था तब देश के कवियों और साहित्यकारों ने अपनी कलम की क्रांति से वो हुंकार भरी थी कि देश के युवा से लेकर हर वर्ग स्वतंत्रता पाने को लेकर व्याकुल हो उठे थे। स्वतंत्रता की लड़ाई में हमारी सबसे बड़ी ताकत एकता थी और उस वक्त पूरे देश को एक सूत्र में बांधने में हिंदी ने निर्णायक भूमिका निभाई थी।

कब मनाया गया पहला हिंदी दिवस ?

आज यही इसी हिंदी भाषा को लेकर खास दिन है, जब देशभर में ‘हिंदी दिवस’ मनाया जा रहा है। 1949 में आज ही के दिन भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में हिंदी को राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया था। 1953 से पूरे देश में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी।

कब मिला राजभाषा का दर्जा ?

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में फैसला लिया गया कि हिंदी भी केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी। संविधान में हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किए जाने का इस रूप में उल्लेख किया गया है- ‘संघ की राष्ट्रभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।’

हिंदी आत्मनिर्भरता का एक सशक्त आधार भी

हिंदी सम्पूर्ण देश में सांस्कृतिक और भावात्मक एकता स्थापित करने का प्रमुख माध्यम रही है। राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक राष्ट्रीय स्वाभिमान को एक सूत्र में पिरोने वाली हिंदी आत्मनिर्भरता का एक सशक्त आधार भी है। हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने के उपलक्ष में हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता है।

हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा

हिंदी दिवस 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है ? इसके बारे में जानेंगे तो देश-दुनिया के इतिहास में यह तारीख कई वजहों से दर्ज है। इस तारीख को ऐसा बहुत कुछ घटा है, जिससे इससे अतीत में झांकना जरूरी हो जाता है। भारत के लिहाज से 14 सितंबर की तारीख बहुत अहम है। दरअसल साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो देश के सामने कई बड़ी समस्याएं थीं। इसमें से एक समस्या भाषा को लेकर भी थी। भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती थीं। ऐसे में राजभाषा क्या होगी यह तय करना एक बड़ी चुनौती थी। हालांकि, हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था।

किन साहित्यकारों का रहा विशेष योगदान ?

व्यौहार राजेन्द्र सिंह जी, हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे जिन्होंने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में अति महत्वपूर्ण योगदान दिया था। फलस्वरूप उनके 50वें जन्मदिन पर, अर्थात 14 सितम्बर 1949 को, हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया और तभी से हर वर्ष इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

व्यौहार मूर्धन्य साहित्यकार राजेंद्र सिंह ने दूसरे साहित्यकारों आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेलकर, मैथिली शरण गुप्त, सेठ गोविंद दास के साथ मिलकर हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनवाने में अथक योगदान दिया। इसे संयोग कहिए कि राजेंद्र सिंह के जन्मदिन 14 सितंबर को ही संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। इसे 26 जनवरी 1950 को संविधान में स्वीकार कर लिया गया लेकिन तीन साल बाद 1953 में राजेंद्र सिंह के जन्मदिवस पर पहला हिंदी दिवस मनाया गया। इसके बाद पूरे देश में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

देश में 77 प्रतिशत लोग बोलते हैं हिन्दी

दुनिया के कंप्यूटर युग में बदलने के बाद हिंदी का प्रचार-प्रसार अत्यधिक तेजी से हुआ। कई तकनीकी विषयों की हिंदी में पढ़ाई ने हिंदी के प्रसार को नया आयाम दिया है। हिंदी के प्रभाव क्षेत्र का यह कारवां आज यहां तक पहुंच गया है कि अंग्रेजी, स्पेनिश और मंदारिन के बाद हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में 77 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते, समझते और पढ़ते हैं।

हालांकि हिंदी पहले के मुकाबले बहुत बदल गई है। एक जमाने में जिस तरह की हिंदी बोली और लिखी जाती थी वो अब चलन से बाहर हो गई है। जरूरत के हिसाब से इसमें कई परिवर्तन आए हैं। हिंदी में यह बदलाव दशक-दो दशक की बात नहीं है बल्कि हिंदी भाषा 1000 साल से ज्यादा का इतिहास अपने आप में समेटे हुए है।

हिंदी का इतिहास

भाषा वैज्ञानिकों के मुताबिक हिंदी साहित्य का इतिहास वैदिक काल से आरंभ होता है। समय-समय पर इसका नाम बदलता रहा। कभी वैदिक, कभी संस्कृत, कभी प्राकृतिक, कभी अपभ्रंश और अब हिंदी। हिंदी भाषा के उद्भव और विकास की प्रचलित धारणाओं के मुताबिक प्रकृत के अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी का उद्भव माना जाता है। इसे विद्यापति ने देसी भाषा कहा। हिंदी साहित्य का आरंभ 8वीं शताब्दी से माना जाता है। बौद्ध धर्म की एक शाखा वज्रयान के सिद्धो जनता के बीच उस समय की लोकभाषा में अपने मत का प्रचार किया। हिंदी का प्राचीन साहित्य इन सिद्धों ने पुरानी हिंदी में लिखा। इसके नाथ पंथी साधुओं ने बौद्ध शांकर, तंत्र योग और शैव मतों को मिलाकर नया पंथ चलाया उन्होंने लोक प्रचलित पुरानी हिंदी में अनेक धार्मिक ग्रंथ की रचना की। इसके बाद जैनियों की रचनाएं भी मिलती हैं। इसी काल में अब्दुल रहमान का काव्य संदेश रासक भी लिखा गया जिसमें प्रवृति बोलचाल के निकट की भाषा मिलती है।

11वीं सदी में देसी भाषा हिंदी का रूप साफ हुआ। इस काल में राजाओं के संरक्षण में चारणों और भाटों ने रासो के रूप में प्रचलित वीर गाथा लिखी। इसी दौरान मैथिल कोकिल विद्यापति हुए जिनकी पदावली में मानवीय सौंदर्य और प्रेम के अनुपम व्यंजना मिलती है। अमिर खुसरो का भी यही समय है, उन्होंने ठेठ खड़ी बोली में अनेक पहेलियां, मुकरियां और दो सखुन की रचना की। इन गीतों-दोहों की भाषा ब्रजभाषा है। 13वीं सदी के धर्म के क्षेत्र में फैले अंधविश्वास को तोड़ने के लिए भक्ति आंदोलन के रूप में भारत व्यापी सांस्कृतिक आंदोलन शुरू हुआ जिसने सामाजिक और व्यक्तित्व मूल्यों की स्थापना की।

इस तरह विभिन्न मतों का आधार हिंदी में निर्गुण और सगुण नाम से भक्ति काव्य की दो शाखाएं साथ-साथ चली। इस दौरान कई बड़े ग्रंथों की रचना हुई। 18वीं सदी के आसपास हिंदी कविता में नया मोड़ आया जो रीतिकाल के नाम से मशहूर हुआ। इसे तत्कालिक दरबारी संस्कृति और संस्कृत साहित्य से बढ़ावा मिला तो वहीं आधुनिक काल यानि 19वीं सदी में भारतीयों का यूरोपीय संस्कृति से सम्पर्क हुआ। नए युग के साहित्य की प्रमुख संभावनाएं खड़ी बोली गद्य में भी थी। इसलिए इसे गद्य युग भी कहा गया। हिंदी का प्राचीन गद्य राजस्थानी, मैथिली और बृज भाषा में मिलता है। वहीं खड़ी बोली की परम्परा प्राचीन है। अमिर खुसरो से लेकर भारत भूषण तक के काव्य में इसके उदाहरण हैं।

इस तरह अपनी उत्पत्ति के बाद से हिंदी लगातार समृद्ध होती गई और इसका रुतबा भी बढ़ता गया। आज हिंदी में कामकाज जोर पकड़ रहा है। सोशल मीडिया और नई-नई तकनीकों में हिंदी का उपयोग किया जा रहा है। इससे न सिर्फ हिंदी का दायरा बढ़ रहा है बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़े रहे हैं। आजादी के बाद के सात दशकों में संचार माध्यमों में हिंदी बहुत मजबूत हुई है। हिंदी के अखबारों का प्रसार बहुत तेजी से बढ़ा है।

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