क्या स्त्री शूद्र का वेदाध्ययन में अधिकार है ? धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास

प्रतापगढ़ रामानुज आश्रम महान भाष्य कार यतिराज रामानुजाचार्य विरचित श्रीभाष्यम् जिसने भारतीय समाज को समरसता का पाठ पढाया।शूद्रों के भी जीवनोत्थान की चिन्ता की। प्रपत्ति जैसे साधन के बिना किसी जाति ,लिंग ,आश्रम, आयु ,वर्ण की बाध्यता के परमलक्ष्य के साधन के रुप में प्रतिष्ठा की।जिसने अवैदिक मान्यताओं का खण्डन कर वैदिक मान्यताओं की यथार्थतः प्रतिष्ठा की वकालत की ।चौहत्तर विद्वानों को इस श्रीभाष्यम् के चहुंओर प्रचार प्रसार का दायित्व सौपा ।कालक्षेप कर सनातन वैदिक मान्यताओं को जन जन को समझाने का संकल्प दिया।
कभी भी ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र का पक्ष नही लिया। तब व अब में देश ,काल व पात्र में अंतर है।सो अब ब्राह्मण के संस्कारों की क्या हालत उसको भी ध्यान देना जरूरी है। मेरा स्पष्ट मन्तव्य है कि जो दशा ब्राह्मण की आप आज सोच रहे है ,एक हजार वर्ष पूर्व कोई ज्यादा अच्छी नही थी ।आज का ब्राह्मण शिक्षित हुआ है ,समृद्ध हुआ है ।


उसकी राजनैतिक ,प्रशासनिक ,सामाजिक औकात बढी है ।उस समय भी चातुर्वर्ण्य व्यवस्था थी ,आज भी चातुर्वर्ण्य व्यवस्था है ।हां,आज सामाजिक समरसता विखण्डित हुई है ।
आज लाभों के लिए शूद्र अपने को शूद्र वर्ण में पंजीकृत करवा कर सम्पन्नता की सीढियां चढ रहा है ।आज भी सवर्ण,अन्य पिछड़ावर्ग, अनुसूचित जन जाति और अनुसूचित जाति की जड़े ज्यादा दृढ हुई ।यदि कही ह्रास हुआ है तो सामाजिक समरसता का ह्रास हुआ है ।वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र में ये सात सूत्र क्यों रखे ,इसे दूसरे विद्वान् मित्र विद्वानों के खोपड़ी की खुजलाहट कह कर नकार रहे है ,उन्ही के शब्दों में इस विषय को वर्तमान मे न छेड़ें तो अच्छा है। ये केवल तथाकथित विद्वानो की खोपडी की खुजलाहट बकवास मात्र है।
यदि ब्रह्मसूत्र और श्रीभाष्य बकवास मात्र है तो आप ने जिस कर्म काण्ड,पौरोहित्य और कथा प्रवचन क्षेत्र को अपनाया है ,वह समाज को बेवकूफ बनाकर आजीविका अर्जित करने का मार्ग मात्र है ।आज के एक हजार वर्ष पहले जब श्रीभाष्यम् लिखा गया उस समय देश में जैन ,बौद्ध, शैव ,शाक्त ,न्याय ,वैशेषिक, चार्वाक ,अद्वैत आदि सभी दर्शन हावी और प्रभावी थे ।उस समय समाज को यथार्थ दर्शन की ओर प्रवृत्त करना क्या बकवास मात्र थी ।
आज हम उस सूत्र पर ध्यान केन्द्रित करते है जो कहता है कि वेदों का अध्ययन स्त्री शूद्र के लिए क्यों वर्जित है ,ब्रह्मसूत्र का 101वां सूत्र कहता है
संस्कारपरामर्शात् तदभावाभिलाषाच्च।1/3/36
वेदाध्ययन अथवा ब्रह्मविद्या के उपदेश से पूर्व उपनयन संस्कार का परामर्श दिया गया है ।पहले उपनयन ,उसके बाद ही वेदाध्ययन प्रारम्भ किया जाता रहा है ।चूंकि स्त्री और शूद्र का कथमपि उपनयन संस्कार का विधान नही है,वे इस संस्कार के लिए अनर्ह है ,इसीलिए वे वेदाध्ययन के लिए पात्र नही माने गये है ।आज तो राहुल भी यज्ञोपवीत पहिन कर ब्राह्मण बन रहे हैं ।विद्वान् लोग इस कृत्य को उचित ठहरा रहे है ।इसे शास्त्रीय अध्ययन को बकवास मानने का ही परिणाम है ।
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