12 मई दिन बृहस्पतिवार को वैशाष मास शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी : धर्माचार्य
मोहिनी एकादशी की बहुत-बहुत बधाई।
12 मई दिन बृहस्पतिवार को वैशाष मास शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी है।
धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले हे महाराज पूर्व काल में परम बुद्धिमान श्री रामचंद्र जी ने महर्षि वशिष्ठ से यही बात पूछी थी। श्रीराम ने कहा भगवन समस्त पापों का क्षय तथा सब प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला व्रतों में उत्तम कोई व्रत हो उसे मैं सुनना चाहता हूं ।
वशिष्ट बोले हे श्री राम तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है ,मनुष्य तुम्हारा नाम लेने से ही सब पापों से शुद्ध हो जाता है, तथा लोगों के हित की इच्छा से मैं पवित्रो में पवित्र उत्तम व्रत का वर्णन करूंगा।
वैशाख मास शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है। उसका नाम मोहिनी एकादशी है जिस के व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पाप समूह से छुटकारा पा जाते हैं।
पूर्वकाल की बात है सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की सुंदर नगरी है। वहां पर धृतिमान नामक राजा राज्य करते थे। उसी नगर में धनपाथ नामक वैश्य रहता था जो धन-धान्य से परिपूर्ण था ।भगवान का भक्त था, दूसरों के लिए कार्य किया करता था। उसके 5 पुत्र थे सुमना ,द्युतिमान ,मेधावी चौथा सुकृति पांचवा पुत्र जिसका नाम धृष्टबुद्धि था । वह बड़ा ही पापी था। दुर्व्यसन में आसक्त रहता था, एक दिन एक वेश्या के साथ गले में बाहें डालकर चौराहे पर घूमता देखा गया तब उसके भाइयों ने उसे घर से निकाल दिया। इधर उधर भटकते हुए एक दिन वह किसी पुण्य के उदय होने के कारण महर्षि कौडिन्य के आश्रम पर जा पहुंचा ।वैशाख का महीना था। महर्षि कौंडिन्य गंगा जी में स्नान करके आए थे । उसने पास जाकर कहा हे गुरुदेव कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरी मुक्ति हो।
मुनिवर ने कहा कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो उसी के उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किए हुए पाप जो मेरु पर्वत के समान होते हैं वह भी नष्ट हो जाते हैं। बस ऐसा कहते ही, हे श्री राम मुनि का वचन सुनकर धृष्टबुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया। उसने कौडिन्य के बताए हुए नियम के अनुसार वैशाख मास की एकादशी का व्रत किया। नृपश्रेष्ठ इसके करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्री विष्णु धाम को चला गया।
इस प्रकार यह मोहनी का व्रत बहुत ही उत्तम है ,इसके पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।
नोट:-पारणा 13 मई को प्रातः 7 बजकर 54 मिनट तक
ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास, रामानुज आश्रम, संत रामानुज मार्ग ,शिव जी पुरम, प्रतापगढ़ —
कृपापात्र श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरारमणाचार्य रामानुज दास पीठाधीश्वर जगन्नाथ पुरी।