मुंशी प्रेमचंद्र की जयन्ती पर किया गया याद

( ललितपुर न्यूज,) शाखा डाकघर उमरिया के तत्वाधान में शुक्रवार को मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जन्मजयन्ती के उपलक्ष्य में कार्यशाला का आयोजन किया गया।

भारतीयों लोगों को यह जानकार आश्चर्य होगा कि मुंशीजी की रचनायें सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध हैं और लगभग सभी विदेशी भाषाओं में वह अनुवादित हो चुकी हैं। बुल्गारिया सहित कई देशों में तो वह बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। मुंशीजी के लिए ‘कर्मभूमि कागज तो ‘रंगभूमि कैनवास थी। न जाने कितने कागजों पर उन्होंने ‘निर्मला रंगी और ‘गोदान में न जाने कितने शब्दों का दान किया। रंगने की कोशिश में शब्दों की कहीं कमी नहीं की। 56 वर्षों तक साहित्य की सेवा तमाम मुश्किलों के ‘सदन में रहकर की। भोजपुरी की एक कहावत है।

तेतरी बिटिया राज रजावे, तेतरा बेटवा भीख मंगावे जैसी रुढि़वादी परंपरा को तोड़ते मुंशी जी ने जन्म लिया। होश संभाला तो अंग्रेजों का क्रूर शासन चुनौती बना। अब उनकी लेखनी वर्तमान समाज के लिए चुनौती है। समय से कितने आगे थे मुंशीजी लिव इन रिलेशनशिप जैसे शब्द आज के दौर में सामने आए हैं। प्रेमचंद तो उस जमाने के थे जब गौना के बगैर पति-पत्नी मिल भी नहीं सकते थे।

रिपोर्ट : राहुल साहू

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