नवरात्रि में प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है:– धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
प्रतापगढ़ रामानुज आश्रम शारदीय नवरात्रि की बहुत-बहुत बधाई बहुत-बहुत मंगल कामनाएं। शारदीय नवरात्रि को सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु मनाया जाता है। जबकि चैत्र नवरात्रि को आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति, सिद्धि मोक्ष हेतु मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र में सात्विक साधना ,नृत्य और उत्सव मनाए जाते हैं। जबकि चैत्र नवरात्रि में कठिन साधना और कठिन व्रत का विशेष महत्व होता है।
शारदीय नवरात्र का शुभारंभ दिनांक 3 अक्टूबर आश्विन शुक्ल पक्ष दिन गुरुवार से शुभारंभ हो जाएगा। दिनांक दो अक्टूबर की रात्रि 12:24 तक तक आश्विन कृष्ण पक्ष की पितृ अमावस्या है। प्रातः काल सूर्योदय के पश्चात 9:48 तक या अभिजित मुहूर्त में 11:22 के पश्चात 12:09 तक घट स्थापना की जा सकती है। प्रथम दिवस माता शैलपुत्री की पूजा होगी।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम_।।
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनी च।
सप्तमं कालरात्रिति महागौरीति चाष्टमम_।।
नवमं सिद्धीदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।
पूर्व काल में माता सती जब दक्ष के यज्ञ में अपने को समाहित कर दिया था तो उसके पश्चात आपने पुनः हिमवान एवं माता मैना के घर अवतार लिया। नारद जी के कहने से बड़ी होने पर आपने बड़ा ही कठिन तप किया 1000 वर्ष तक मूल और फल खाया फिर 100 वर्ष तक साग खाकर जीवन बिताया कुछ दिन जल और वायु का भोजन किया और कुछ दिन कठोर उपवास किया। जो बेलपत्र सूखकर पृथ्वी पर गिरते थे 3000 वर्ष तक उनको खाया फिर सूखे पत्ते भी छोड़ दिए तब आपका नाम अपर्णा हुआ। तप से उमा का शरीर क्षीण देखकर आकाश से गंभीर वाणी हुई। हे पर्वतराज की कुमारी सुन तेरा मनोरथ सफल हुआ, तू अब सारे असह्य क्लेशों को (कठिन तप को) त्याग दे अब तुझे शिवजी मिलेंगे।
जब तुम्हारे पिताजी बुलाने आवें तप छोड़कर घर चली जाना तुम्हें सप्तर्षि मिलेंगे तब इस वाणी को सत्य समझना। उधर प्रभु श्री राम ने शिव जी को समझाया और पार्वती जी के जन्म की कथा सुनाया। सप्तर्षियों को भेज कर शिवजी ने पार्वती जी से परीक्षा लिया ।माता पार्वती ने कहा कि हे मुनियों आप मेरी अज्ञानता तो देखिए कि मैं सदा शिव जी को ही पति बनाना चाहती हूं। सप्तर्षियों ने बहुत समझाया किंतु माता पार्वती ने कहा की मैं शिव के अतिरिक्त और किसी को नहीं चाहती इस प्रकार माता पार्वती का और भगवान भोलेनाथ का विवाह संपन्न हुआ। गिरिजापति महादेव जी का चरित्र समुद्र के समान अपार है उसका वेद भी पार नहीं पा सकते।
वही माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना किया कि आप श्री रामचंद्र जी के गुणों की पवित्र कथा श्रवण कराइए जिनका यश निर्मल है। शंकर जी ने श्री रामचरित की कथा पार्वती जी को श्रवण कराया। जिसे बाद में वाल्मीकि जी ने रामायण के रूप में रचना किया और संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस के रूप में जन-जन तक पहुंचाया। माता शैलपुत्री की पूजा करने से समस्त कष्टों का निवारण होता है।
दासानुदास ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास रामानुज आश्रम संत रामानुज मार्ग शिवजीपुरम प्रतापगढ़।