इलेक्टोरल बॉन्ड पर SBI को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका! इस फैसले से उड़ी बीजेपी की नींद!
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को SBI के उस आवेदन को ख़ारिज कर दिया, जिसमें उसने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी साझा करने का समय बढ़ाने की मांग की थी। इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए SBI ने 30 जून तक का समय मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से मंगलवार यानी 12 मार्च तक सारी डिटेल साझा करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को फैसला देते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए रद्द कर था। साथ ही एसबीआई से 6 मार्च तक सारी डिटेल चुनाव आयोग के पास जमा करने को कहा था। इस पर एसबीआई ने 30 जून तक का समय मांगा था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एसबीआई की मांग को खारिज करते हुए 12 मार्च तक सारी डिटेल चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया है। साथ ही चुनाव आयोग को ये सारी डिटेल 15 मार्च की शाम 5 बजे तक वेबसाइट पर अपलोड करने को कहा है।
साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी। इसे 29 जनवरी 2018 को कानूनी रूप से लागू किया गया था। सरकार का कहना था कि चुनावी चंदे में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए इस स्कीम को लाया गया है। एसबीआई की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाते हैं। ये रकम एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकती है। इसे कोई भी खरीद सकता है और अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी को दे सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड को साल में चार बार- जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किया जाता था। इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं पार्टियों को दिया जा सकता था जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिले हों। साल में चार बार 10-10 दिन के लिए इन बॉन्ड को जारी किया जाता है। कोई भी व्यक्ति या कॉर्पोरेट हाउस इन बॉन्ड को खरीद सकता था। बॉन्ड मिलने के बाद 15 दिन के भीतर राजनीतिक पार्टी को इन्हें अपने खातों में जमा कराना होता था। कानूनन, राजनीतिक पार्टियां ये बताने के लिए बाध्य नहीं थीं कि उन्हें बॉन्ड कहां से मिला। साथ ही एसबीआई को भी ये बताना जरूरी नहीं था कि उसके यहां से किसने और कितने बॉन्ड खरीदे हैं।
2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम को असंवैधानिक बताया। कोर्ट ने ये भी कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को गोपनीय रखना संविधान के अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के क्लॉज 7 में कहा गया है कि बॉन्ड के खरीदारों की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी, लेकिन अदालत या कानूनी एजेंसियों के मांगने पर इसका खुलासा किया जा सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वालों में एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म भी शामिल थी। एडीआर का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड के जरिए 16,492 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा मिला है। चुनाव आयोग में दाखिल 2022-23 के लिए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को 1,294 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला। जबकि, उसकी कुल कमाई 2,360 करोड़ रुपये रही। यानी, बीजेपी की कुल कमाई में 40 फीसदी हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 से 2021-22 के बीच बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए 5,271 करोड़ रुपये का चंदा मिला। सबसे ज्यादा चंदा उसे 2019-20 में मिला था। वो चुनावी साल था और तब बीजेपी को 2,555 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से आया था।