शास्त्र मे अगरबत्ती जलाना वर्जित क्यों? धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
प्रतापगढ़ रामानुज आश्रम प्रिय मित्रों 27 नवंबर 2022 को दास को हार्ट अटैक हुआ था। जब मैं मेदांता में भर्ती हुआ तो डॉक्टरों ने पूछा क्या आप सिगरेट पीते हैं, तो दास को बहुत आश्चर्य हुआ। मैं सिगरेट नहीं पीता हूं किंतु डॉक्टर साहब ऐसा क्यों पूछ रहे हैं। 1967 से लगभग मैं पूजा करता हूं और अगरबत्ती जलाता था जिसका धुआं कुछ ना कुछ मेरी नाक के सामने आता था जो सांसों के जरिए अंदर चला जाता था। आइए जानते हैं अगरबत्ती का वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है।
शास्त्रो में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है, किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं। यहां तक कि चिता में भी बांस की लकड़ी का प्रयोग वर्जित है।
अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग होता है लेकिन उसे भी नही जलाते ।शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने से पित्र दोष लगता है।
क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है?
बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते है। लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते है।
लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नही जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं।
अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है। यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है।यह भी स्वांस के साथ शरीर मे प्रवेश करता है।
इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी श्वास के साथ शरीर मे पहुचाती है। इसकी लेश मात्र उपस्थिति केन्सर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है।
परन्तु धूप के बनाने में और उसमें सुगंध लाने के कृत्रिम उपाय किये जाने लगे।