‘भारत अखंड हो’ का स्वामी करपात्री जी ने किया था उद्घोष :- धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
प्रतापगढ़ जनपद में एक छोटा सा ग्राम भटनी है। जहां सरयू पारीण ब्राह्मण का परिवार रहता था। पंडित राम निधि ओझा के पिता किसी समय गोरखपुर जिले की ओझौली ग्राम के निवासी थे। कालांतर में कालाकांकर के राजा उन्हें भटनी ले आए और तभी से परिवार यहां रहने लगा। पंडित राम निधि ओझा के तीन पुत्र हुए इनमें सबसे छोटे हरनारायण थे इनका जन्म संवत् 1964 की श्रावण शुक्ल द्वितीया रविवार को ई 1907 में हुआ था। ओझा परिवार सनातन धर्म का कट्टर अनुयाई था। बालक हरनारायण की संस्कृत पढ़ाने की इच्छा पिता को हुई ।प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात घर पर ही प्रथमा के पाठ्यक्रम का अध्यापन आपने कर लिया। इस प्रकार हरनारायण घर में रहते हुए बैरागी से हो गए थे। उस समय आपकी अवस्था 9 वर्ष की थी कभी इधर कभी उधर निकल जाया करते थे। प्रतापगढ़ में 5 वर्ष 7 वर्ष के बालक का विवाह हो जाता था। हरनारायण का भी नौ वर्ष कि आयु में खंडवा जलेसर गंज के पास श्री राम सुचित के यहां महादेवी से विवाह संपन्न हो गया। इस समय आपके परिवार में पंडित शिवकुमार ओझा सनातन धर्म के सन्मार्ग पर चलकर करपात्री जी के विचारों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।तत्पश्चात ढिंगवस राज्य की संस्कृत पाठशाला में आपने पंडित श्री नागेश मिश्रा जी से मध्यमा तृतीय खंडावधि अध्ययन किया।
17 वर्ष के लगभग घर में भगवती स्वरूपा एक कन्या ने जन्म लिया। जिनका नाम भगवती देवी था। सभी का माया मोह त्याग कर एक दिन आप घर से निकल पड़े प्रयागराज के पास कूरेश्वर ग्राम में एक विशाल बट वृक्ष की छाया में बैठे कौपीन धारण किए ध्यान मग्न एक महात्मा का आपने दर्शन किया। यह महात्मा स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती थे जो आगे चलकर ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य वने। वहां से आप नरवर पहुंचे पूर्व कालीन गुरुकुलों जैसे सांगवेद विद्यालय के स्वच्छ वातावरण में तपो मूर्ति नैष्ठिक ब्रह्मचारी श्री जीवन दत्त जी महाराज की अध्यक्षता में देव वाणी संस्कृत की प्राचीन गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार आपका अध्ययन चला।
स्वामी अच्युतमुनि के अनुरोध पर स्वामी विश्वेश्वराश्रम जी नरवर को त्याग कर वहां से सात कोस की दूरी पर भृगु क्षेत्र में आए तो हरनारायण भी उनके साथ चले आए। वहां 3 वर्ष की कठोर साधना उत्तराखंड में जा करके किया ।आपको आत्मा का दर्शन हुआ और परमहंस अवस्था को प्राप्त कर लिए। हरचेतन अब एक परमहंस के रूप में आश्रम में लौटे तो उनके मुख पर अलौकिक आभा थी अब वह अपनी साधना के उच्चतम शिखर पर पहुंच चुके थे, केवल एक कौपीन धारण करते थे, शौच जाने के लिए केवल एक हांडी पास में रखते थे। पवित्र सदाचारी ब्राह्मण के घर भिक्षा मांगते और हाथ पर रखकर ही भोजन करते फिर भोजन के संबंध में भी बड़े कठोर नियम उन्होंने बना लिया। हर किसी कुएं का जल नहीं ग्रहण करते थे, कर में ही भोजन करने के कारण लोग उन्हें करपात्री कहने लगे।
हरिद्वार के अर्धकुंभी का अवसर था जहां पर पंडित मदन मोहन मालवीय जी से आपका शास्त्रार्थ हुआ सेठ गौरी शंकर गोयनका जी विराजमान थे। कोयल घाटी में महात्मा जी के चमत्कार के कारण जबरदस्त आंधी तूफान आया जिसके कारण शास्त्रार्थ रुक गया। गौरी शंकर गोयनका ने” मननीय प्रश्नोत्तरी” नाम से इस शास्त्रार्थ की पुस्तक प्रकाशित किया। तत्पश्चात आप पैदल यात्रा पर निकल पड़े हरिद्वार से काशी जहां पर अनेक विद्वानों के समक्ष आपका प्रवचन हुआ।
स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी से करपात्री जी ने दंड ग्रहण किया 1931 में लगभग 24 की वर्ष की अवस्था में आपने विधवत दंड ग्रहण किया ।अब आपका नाम करपात्री स्वामी हरिहरानंद सरस्वती हो गया बाद में धर्म संघ की स्थापना किया। विंध्याचल धाम में माता जगदंबा के चरणों में 1940 ईस्वी में विजयदशमी के शुभ दिन धर्म संघ की स्थापना की गई। स्वामी जी महाराज अपनी प्रतिष्ठा ख्याति मान लाभ आदि के लिए शास्त्रार्थ के पक्षपाती नहीं थे किंतु उनका सिद्धांत था।” वादे वादे जायते तत्वबोध:” दो पक्षों से जब विचार चलता है तो उसमें अंत में तत्व निर्णय होता है। यज्ञों का अपने सूत्रपात किया संवत 1998 में प्रयाग कुंभ के अवसर पर श्री स्वामी जी लगभग एक मास प्रयाग में रहे। आप द्वारा कश्मीर की यात्रा हुई दिल्ली में चातुर्मास बिताकर सतमुख कोटि होम यज्ञ का आयोजन किया। संवत 1999 में दिल्ली में यज्ञ हुआ। जहां पर जमुना पर मिलिट्री को लोगों द्वारा पुल बनाना पड़ा। देश की आजादी के लिए आप जेल गए 1947 में गौ हत्या के विरोध में आंदोलन चलाया आपको गिरफ्तार किया गया आपके परम शिष्य एवं सहयोगी पूर्व शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती एवं स्वामी राम निरंजन तीर्थ ने आपका सहयोग किया। 1948 में अखिल भारतीय रामराज परिषद की स्थापना किया जिसके प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी बने। देश के अनेक प्रांतो में आपके कैंडिडेट चुनाव लड़े सीकर लोकसभा से चुनाव जीतने वाले शर्मा जी प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने लोकसभा में हिंदी में भाषण दिया।
वेंकटरमन शास्त्री द्वारा हिंदू कोड बिल का जो ड्राफ्ट बना उसके विरोध में स्वामी जी ने पूरे भारत में यात्रा किया। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, हर हर महादेव इन नारों के साथ गौ हत्या बंद हो, भारत अखंड हो, धर्म में हस्तक्षेप ना हो ,मंदिरों की मर्यादा सुरक्षित रहे और विधान शास्त्रीय हो इस नारे को बुलंद करते हुए सत्याग्रह करके आप जेल गए । गांधी जी से पत्र व्यवहार होता रहा डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने निवेदन किया कि चीन की सीमा पर एक चौकी है वह भारत की है ब्रिटिश शासन काल में वहां उर्वाशीयम नाम से पर्ची कटती रही है। अब भारत सरकार उस स्थान को चीन को देने जा रही है। इसका विरोध हमारे संस्कृत स्थान की रक्षा हेतु होना चाहिए। दिल्ली में गौ हत्या के विरोध में पूरे भारत के संतों ने एक विशाल प्रदर्शन किया जिसमें केंद्र शासित सरकार द्वारा संतों पर गोली चलाई गई ।1966 में पूज्यनीय स्वामी जी को गौ हत्या विरोधी आंदोलन में तिहाड़ जेल में रखा गया। तत्कालीन गुलजारीलाल नंदा गृह मंत्री ने इस्तीफा दे दिया। उस समय डॉक्टर लोहिया भी मेरठ जेल में थे। वहां पर वह महराज जी के पास वेद श्रवण करने के लिए आते थे। गोलवरकर जी से भी आपकी वार्तालाप हुई। गांधी जी की मृत्यु के बाद जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक अवैधानिक घोषित किया गया और कार्यकर्ता जेल में डाल दिए गए तब स्वामी जी महाराज भी प्रयाग से काशी आए और काशी में गिरफ्तार हो गए। 6 मास के लिए नजर बंद करके इन्हें सेंट्रल जेल वाराणसी में रखा गया किंतु 6 मार्च की अवधि के पहले ही स्वामी जी महाराज को जेल से छोड़ दिया गया।
करपात्री जी प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने अपने भाषण में कहा कि सिंह को कटघरे में बंद करके उस पर तरह-तरह के मनमानी आरोप लगाना उचित नहीं है सरकार को गोलवरकर के विरुद्ध खुली अदालत में मुकदमा चलाना चाहिए कुछ दिन बाद गोलवरकर जी को छोड़ दिया गया।
सन्मार्ग पत्रिका के माध्यम से सर्वजन हिताय एवं सर्व जन सुखाय की राजनीति को कार्य रूप में परणीत करने की बात करते थे आपने कहा धर्म नीति का पति है और धर्म के बिना राजनीति विधवा के समान है। धर्म विरुद्ध नीति कहीं तत्काल अभ्युदय का साधन होती हुई भी परिणाम में अहित कारिणी सिद्ध होती है। स्वामी जी धर्म सापेक्ष पक्षपात विभिन्न राज्य की स्थापना की बात करते हैं।
विचार पीयूष, भगवत्तत्व, वर्णाश्रम धर्म और संकीर्तन मीमांसा, वेद का स्वरूप और प्रमाण्य, मार्क्सवाद और रामराज्य , अहमर्थ और परमार्थसार, संघर्ष और शांति, भक्तिरसार्णव, वेद स्वरूप विमर्श, चातुर्वर्ण्य संस्कृत विमर्श, राष्ट्रीय सेवक संघ और हिंदू धर्म, भक्ति सुधा, श्री विद्यारत्नाकर ,विदेश यात्रा, शास्त्रीय पक्ष, रामायण मीमांसा, पूंजीवाद समाजवाद एवं रामराज्य ,वेदांत पारिजात, वेदार्थ चिंतामणि आपकी महत्वपूर्ण रचनाएं हैं। आप द्वारा रचित विचार नवनीत अद्भुत ग्रंथ है। लगभग 80 वर्ष की आयु तक रात 1:30 बजे ही उठकर पूजन आसन पर बैठ जाते। घंटों वेदभाष्य लिखते पूजन त्रिकाल नियमों का पालन करना, एक समय सायं 5:00 बजे सामान्य भिक्षा लेना भयंकर शारीरिक कष्ट के समय भी व्रत उपवास और नियम को भंग न करना। कष्ट पीड़ा को हंसते-हंसते पी जाना भगवान विश्वनाथ एवं मां अन्नपूर्णा के चरणों में सदा अनुराग बनाये रखना। भगवान शालिग्राम की प्रातः काल सेवा कर उनका श्रीतीर्थ पाद्द लेना आपकी नियमित क्रिया थी। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ सदैव आप किया करते थे। श्रीमद्भागवत का पाठ सुनाते, माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन आपने कहा की चतुर्दशी को रविवार को पुष्य नक्षत्र है सर्वार्थ सिद्धि योग है सावधान रहना इतना संकेत करके चुप हो गए। दो दिन बाद चतुर्दशी तिथि पुष्पय नक्षत्र सर्वार्थसिद्व योग में गंगा स्नानोपरांत करपात्र धाम स्थित वेदांनुसंधान केंद्र में शिव शिव शिव तीन बार कहते हुए ब्रह्मलीन हो गए। तीसरे दिन पुरी मठाधिपति शंकराचार्य श्री निरंजन देव तीर्थ द्वारा पत्थर निर्मित पेटी में पार्थिव शरीर रखकर जल समाधि दी गई। जनपद प्रतापगढ़ ही नहीं विश्व की महान विभूति इस धरा धाम को रास्ते पर चलना हम सबको कर्तव्य है आपका सपना था रामराज्य स्थापित हो किंतु वह रामराज्य ऐसा हो जहां पर “कोउ दरिद्र नहिं कोउ दुखी न दीना”42वीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन विनम्र श्रद्धांजलि।
दासानुदास ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
रामानुज आश्रम संत रामानुज मार्ग शिवजीपुरम प्रतापगढ़।