वैष्णव की कथनी और करनी में फर्क नहीं होता:– धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
प्रतापगढ़ रामानुज आश्रम में सर्वोदय सद्भावना संस्थान द्वारा
महान भाष्यकार शेषावतार यतिराज फणिराज भगवान रामानुजाचार्य के 1006 वां जन्मदिवस वैष्णव भक्तों द्वारा धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर वेद मंत्रों के मध्य धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास ने स्वामी रामानुजाचार्य के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित एवं माल्यार्पण कर विधिवत पूजन अर्चन करने के पश्चात अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि जिस तरह माता कौशल्या के गर्भ से भगवान श्री रामचन्द्रजी का माता अदिति के गर्भ से भगवान वामन जी का माता देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण जी का एवं माता रोहिणी के गर्भ से श्री बलराम जी का प्रादुर्भाव हुआ। उसी तरह कर्क लग्न के अभिजित मुहूर्त में माता कांतिमती के गर्भ से आमिताभ फणिराज श्री शेष का रामानुजाचार्य के रूप में भूतपुरी नामक ग्राम में अवतार हुआ।
मेषाद्रा॑ संभवं विष्णोदर्शनस्थापनोत्सुकम॒ ।
तोण्डिर मण्डले शेषमूर्ति रामानुजं भजे।।
मेष मास के आद्रा॑ नक्षत्र में अवतीर्ण श्री विशिष्टाद्वैत दर्शन के संस्थापक, शेषमूर्ति भगवान रामानुजाचार्य की मैं वंदना करता हूं। आपका अवतार जीवों के कल्याण के लिए भगवान श्रीमन्नारायण के आदेश से शेष भगवान ने स्वयं ईसवी सन 1017 युधिष्ठिर संवत 4155 कलि संवत 4118 को आद्रा नक्षत्र में चैत्र मास के शुक्ला पंचमी तिथि को बृहस्पतिवार के दिन कर्कट लग्न तथा पिंगला वर्ष में हारित गोत्रिय यजु:शाखाध्यायी वंश में भूतपुरी नामक ग्राम में माता कांतिमती एवं पिता पंडित आचार्य केशव के घर अवतरित हुए। 60 वर्षों तक भारत का भ्रमण किया और 60 वर्षों तक भगवान श्री रंगनाथ के मंदिर में आप विराजित रहे।
विशिष्टाद्वैत सिद्धांत का आपने प्रतिपादन किया। आपका सपना था कि सारा जगत श्री वैष्णव मय हो। प्रेम करुणा दया सहानुभूति त्याग आदि सद्गुणों से भरा हो ओत प्रोतहो। आप द्वारा अनेक ग्रंथों की रचना की गई। श्रीमद्भगवत गीता पर श्री भाष्य आपने लिखा आपका उपदेश था कि श्रीवैष्णव की कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए, जब तक देहात्मबोध रहता है तब तक मनुष्य जाति के अभिमान से मुक्त नहीं हो सकता। देह में ही नहीं नाम, वर्ण तथा आश्रम का अधिष्ठान है। देह ही ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र मुसलमान ईसाई अंग्रेज फारसी हिंदू आदि नाम से अभिहित हुआ करती है। देहात्मबोध से मुक्त होकर मनुष्य भगवत भक्त हो जाने से एक ही जाति रहेगी और उस जाति का नाम भागवत जाति होगा ।
आपके शिष्यों में 11000 लोग यज्ञोपवीत धारी थे 12000 लोग विना जनेऊ धारी थे, 700 साधु सन्यासी थे, 700 महिलाएं थीं 12000 लोग भागवत निष्ठ थे। इसके अलावा हजारों लोग आप पर आश्रित थे। 74 प्रधान आचार्यों का चयन करके आपने देशभर में श्री वैष्णव मठों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जो आज रामानुज कोट के नाम से जाने जाते हैं। दास भी नैमिषारण्य के रामानुज कोट का ट्रस्टी है। आप ने दलितों को मंदिरों में प्रवेश कराया कुम्हार बढ़ई शिल्पी चित्रकार दर्जी संगीत नृत्यकों को भी श्री रंगनाथ भगवान की सेवा में लगा दिया था।
मेला कोटा के अंतर्गत श्रीमन नारायण के मंदिर में दिल्ली के मुसलमान सम्राट की बेटी जो भागवत हो गई थी, उसका एक श्री विग्रह बनवा कर प्रतिष्ठित कराया जहां पर आज भी उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। आपने कहा भागवत भगवान से भी महान है।
परम धाम जाने के पूर्व आपने अपने श्री विग्रह को सरसों की इच्छानुसार निर्मित कराकर के भगवान श्री रंगनाथ के मंदिर में विराजित कराया। जहां आज भी आपके दाहिने हाथ और दाहिने पैर की उंगलियों में जो नाखून है वह बढ़ रहे हैं। 120 वर्षों तक इस पावन धरा पर विराजित रहकर पुनः भगवान की सेवा में क्षीरसागर पधार गए।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से अरुण मिश्रा, देवेंद्र ओझा एडवोकेट, ज्ञानेश्वर तिवारी सुदर्शन रामानुज दास, अशोक दुबे अनिरुद्ध रामानुज दास, नारायणी रामानुज दासी, रामचंद्र उमर वैश्य रामानुज दास, राजा जायसवाल रामानुज दास, श्यामसुंदर गुड्डू रामानुज दास, बद्री प्रसाद मिश्रा, उषा मिश्रा, इंजीनियर अनामिका पांडे, डा अंकिता पांडे, इं पूजा पांडे सहित अनेक भक्तों ने पूजन अर्चन किया।