एकादशी से बड़ा कोई व्रत नहीं वैष्णव धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं:– धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी की बहुत बहुत बधाई।
15 नवंबर दिन शनिवार को मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी है।
धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने जो कथा सुनाया था ।उसी कथा को सूत जी सनकादिक ऋषियों से कह रहे हैं।
भगवान ने कहा हे अर्जुन हेमंत ऋतु के मार्गशीष महीने के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है ।उस दिन प्रातः काल नियम से संकल्प लें हे क्रांति रथ, हे विष्णु क्रांति, हे वसुंधरे, हे मृतिके मेरे पूर्व जन्म के पापों को दूर करो। इस प्रकार मृतिका लगाकर स्नान करके व्रत का संकल्प लें। शंखो द्धार क्षेत्र में स्नान करके गदाधर भगवान का दर्शन करके जो फल मिलता है वह एकादशी के उपवास के 16 वें भाग के बराबर भी नहीं है।
हे अर्जुन संक्रांति में दान करने से 4 लक्ष गुणा फल विशेष होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्य चंद्र ग्रहण में स्नान करने से जो फल होता है वह सब एकादशी के उपवास से प्राप्त होता है। अश्वमेध यज्ञ करने से जो फल मिलता है उससे सौ गुना फल एकादशी के उपवास से प्राप्त होता है।
जिसके घर पर एक लाख तपस्वी नित्य भोजन करते हैं, उससे जो पुण्य होता है वही एकादशी उपवास करने से होता है। वेद पढ़े हुए ब्राह्मणों को हजार गौ दान देने से जो फल मिलता है उस से 10 गुना विशेष फल एक ब्रह्मचारी के भोजन से मिलता है, उससे विशेष भूमिदान से और उससे हजार कन्यादान से कहा गया है। उस से 10 गुना फल भूखे को अन्न देने से, जो पुण्य होता है उसके वराबर कोई दान न हुआ है और ना होगा।
उनसे स्वर्ग में रहते हुए पिता और देवता तृप्त हो जाते हैं। एकादशी के व्रत की कोई सीमा नहीं है। एकादशी के पुण्य का प्रभाव देवताओं को भी दुर्लभ है ।श्री कृष्ण जी कहते हैं सबसे पवित्र एकादशी है।
पहले सतयुग में प्राचीन काल में ब्रम्ह वंश में देवताओं को पीड़ित करने वाला भयंकर नाडीजंघ नामक दैत्य पैदा हुआ। उसका प्रसिद्ध पुत्र बलवान मुर नामक दैत्य था। वह बड़ा आश्चर्यजनक महारुद्र देवताओं को भय देने वाला था। उस तेजस्वी ने अपने तेज से इंद्रलोक पर अधिकार जमा लिया। देवता महादेव जी के साथ भगवान के पास क्षीर सागर में पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले हे गरुड़ध्वज हम पर कृपा करो ,हे जगत के पालन करने वाले हे धनंजय ,हम पर दया करिए।
भगवान नारायण ने कहा चिंता मत करो, हम मुर राक्षस का वध करेंगे। भगवान नारायण मुर राक्षस से युद्ध करने के लिए‌ निकल पड़े 1000 वर्षों तक युद्ध होता रहा।
भगवान अंत में थक कर बद्रिकाश्रम को पधारे, वहां हेमवती नाम की शोभायमान गुफा में महायोगी संसार के पालन करने वाले भगवान नारायण शयन करने को चले गए।
हे धनंजय इस बारह योजन की गुफा में एक ही दरवाजा था भगवान वहां शयन कर रहे थे। वह गुफा में भी पीछे-पीछे पहुंच गया ।मुझे सोता हुआ देखकर वह मारने दौड़ा उस के ऐसे विचार को समझकर मेरे देह से एक प्रकाशमान पुंज कन्या उत्पन्न हुई। हे पांडु नंदन दिव्य शस्त्रों को लेकर युद्ध में उसने ललकारा अंत में मुर का उसने सिर काट दिया। जैसे ही मेरी निंदिया टूटी मैंने देखा कि एक दिव्य कन्या हमारे सम्मुख खड़ी है और दुष्टात्मा मार डाला गया है ।मैंने पूछा देवी तुम कौन हो? उस कन्या ने कहा हे प्रभु आप को यह मारने दौड़ा तो हम आपके शरीर से उत्पन्न हुए और हमने इस को मार डाला।
भगवान ने उस स्त्री को वरदान दिया कि आज मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन तुम पैदा हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा और वर्ष में 12 महीने तथा पुरुषोत्तम मास में भी जब एकादशी आएगी चाहे कृष्ण पक्ष की हो चाहे शुक्ल पक्ष की हो जो भी एकादशी का व्रत करेंगे तो हम उनके पहाड़ के बराबर पाप को ऐसे जलाकर राख कर देंगे जैसे रुई के पहाड़ को अग्नि जलाकर राख कर देती है।
हे कुंतीपुत्र कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत में कोई भेद नहीं करना चाहिए। पापों को नष्ट करने वाली यह पवित्र तिथि है। द्वादशी युक्त एकादशी सबसे श्रेष्ठ है ।एकादशी के व्रत से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है ,इसमें कोई संदेह नहीं है।
पुष्पांजलि कर प्रार्थना करें हे पुंडरीकाक्ष ,हे अच्युत एकादशी व्रत रहूंगा। 3 उपवास के फल का इच्छुक तीन बार अष्टाक्षर मंत्र को पढ़कर पात्र में रखे हुए जल को पान कर ले।
हे राजेंद्र एकादशी से बड़ा व्रत तथा वैष्णव धर्म से बडा कोई धर्म नहीं है।
ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास, रामानुज आश्रम, संत रामानुज मार्ग ,शिव जी पुरम प्रतापगढ़ ।
कृपापात्र श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जीयर स्वामी मठ जगन्नाथ पुरी एवं पीठाधीश्वर श्री नैमिषनाथ भगवान रामानुज कोट नैमिषारण्य सीतापुर ।
नोट:— पारणा दिनांक 16 नवंबर 2025 रविवार को प्रातः 8:27 तक अथवा दोपहर में 10:37 से 12:46 तक

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