विश्व में बजेगा भारतीय आयुर्वेद का डंका

कहावत है कि उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं जो केवल पुस्तकों में बंद रहता है और उस जीवन का भी कोई लाभ नहीं जो सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जीता है। अब नए भारत का संकल्प है कि वो अपने प्राचीन ज्ञान के जरिए नए प्रयास करे और भारतवासियों और विश्व में सभी को स्वास्थ्य के मार्ग पर ले जाए। हमारे प्राचीन ज्ञान ”आयुर्वेद” के माध्यम से यह कैसे किया जा सकता है आज हम इस बारे में जानेंगे…

सदियों पुरानी भारतीय संस्कृति ने दुनियाभर को दिए कई अनमोल उपहार

सदियों पुरानी भारतीय संस्कृति ने दुनियाभर को कई अनमोल उपहार दिए हैं। ”योग” और ”आयुर्वेद” भी भारत की तरफ से पूरे विश्व को स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने की दो अनुपम सौगात हैं। योग गौरवशाली भारतीय परम्परा की अमूल्य निधी है। योग शरीर, मन और आत्मा को एकाकार करता है। जी हां, योग इलनेस से वेलनेस का सफर है। भारत में योग का इतिहास बेहद प्राचीन है लेकिन बीते कुछ वर्षों में योग ने सरहदों को मिटाकर पूरी दुनिया को एक नई दिशा दिखाई है। स्वस्थ जीवन का आधार मानी जाने वाले योग के व्यापक महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ’11 दिसबंर 2014′ को एलान किया कि 21 जून का दिन दुनियाभर में योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

उस दौरान पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था ”योग हमारी पुरातन पारम्पारिक अमूल्य देन है। योग मन व शरीर विचार व कर्म, संयम व उपलब्धी की एकात्मता का तथा मानव व प्रकृति के बीच सामन्जस्य का मूर्त रूप है।” इन शब्दों के साथ पीएम मोदी ने एक ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ को आरंभ करने की दिशा में कदम बढ़ाया था। तब से यह प्रत्येक वर्ष मनाया जा रहा है।

योग जहां शांति का मार्ग है ”खुद को जानने का तरीका” वहीं आयुर्वेद रोग मुक्त जीवन जीने का बेहतरीन माध्यम है। मानव सभ्यता के शुरुआती दौर से ही आयुर्वेद के प्रमाण मिलते हैं। आयुर्वेदिक औषधियों और जड़ी-बूटियों से बीमारियों को ठीक करने का लंबा इतिहास रहा है। समय के बदलते दौर के साथ दुनिया के कई देश इसकी महत्ता समझने और स्वीकारने लगे हैं। भारतीय आयुर्वेद की कई शाखाएं विदेशों में खुल चुकी हैं।

SAARC देशों में आयुर्वेद भारत की तरह ही लोकप्रीय

दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (SAARC) के देशों में तो आयुर्वेद भारत की तरह ही लोकप्रीय और भरोसेमंद है। इसके अलावा यूरोप और अफ्रीका के देशों में आयुर्वेदिक अस्पतालों की संख्या बढ़ रही है और आयुर्वेद पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बन रहा है। केवल इतना ही नहीं, भारत के आयुर्वेदाचार्य अलग-अलग देशों में जाकर ट्रेनिंग दे रहे हैं। पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों के समृद्ध करने की दिशा में आयुष मंत्रालय की कार्य योजनाएं भी आयुर्वेद को दुनियाभर में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। दुनियाभर में आयुर्वेद से जुड़े शोध कार्य हो रहे हैं। जिससे इसकी प्रामाणिकता को नया आयाम मिल रहा है। ग्लोबल दुनिया में योग और आयुर्वेद को जो नई ऊंचाइयां मिल रही हैं वह बेहद सुखद है।

आयुर्वेद आम जनता के बीच शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से रोग मुक्त, स्वस्थ और लंबे जीवन जीने की आवश्यकता और महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पौधों से लेकर आपकी प्लेट तक, शारीरिक मजबूती से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक, आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा का प्रभाव और असर बहुत व्यापक है।

भारत में बनेगा पहला WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसीन

इसी कड़ी में अब देश में पारंपरिक औषधि सेक्टर को बढ़ावा देने की दिशा में भारत में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना होने जा रही है। पीएम मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के बीच एक मेजबान देश समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

दुनियाभर में पारंपरिक चिकित्सा का पहला ग्लोबल आउटपोस्टेड सेंटर

गुजरात के जामनगर में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (WHO जीसीटीएम) की स्थापना को स्वीकृति दे दी है। आयुष मंत्रालय के तहत जामनगर में डब्ल्यूएचओ जीसीटीएम की स्थापना की जाएगी। यह दुनियाभर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए प्रथम और एकमात्र आउटपोस्टिड वैश्विक केंद्र (कार्यालय) होगा। डब्ल्यूएचओ जीसीटीएम पारंपरिक चिकित्सा से संबंधित सभी वैश्विक स्वास्थ्य मामलों में नेतृत्व प्रदान करेगा और साथ ही पारंपरिक चिकित्सा अनुसंधान, प्रथाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न नीतियों को आकार देने में सदस्य देशों को समर्थन प्रदान करेगा।

पीएम मोदी की पहल से आरोग्य का पूरा सिस्टम बनेगा एक बड़े बदलाव का साक्षी

याद हो विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेबेरियस ने पीएम मोदी की मौजूदगी में 13 नवंबर, 2020 को 5वें ”आयुर्वेद दिवस” के अवसर पर भारत में डब्ल्यूएचओ जीसीटीएम की स्थापना की घोषणा की थी। उसी क्रम में अब एक और कदम आगे बढ़ाया गया है। इसके लिए आयुष मंत्रालय ने कई मोर्चों पर डब्ल्यूएचओ के साथ आयुर्वेद और यूनानी प्रणाली के प्रशिक्षण और अभ्यास के मामले में महत्वपूर्ण दस्तावेज विकसित करने, रोग-11 के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण के पारंपरिक चिकित्सा अध्याय में दूसरा मॉड्यूल पेश करने और एम-योग जैसे ऐप विकसित करने व हर्बल मेडिसिन (आईपीएचएम) के अंतर्राष्ट्रीय फार्माकोपिया और अन्य अनुसंधान अध्ययनों आदि के कार्य के समर्थन में सहयोग किया है।

आयुर्वेद रोग मुक्त जीवन जीने का बेहतरीन माध्यम

पारंपरिक चिकित्सा यानि आयुर्वेद स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली का एक प्रमुख स्तंभ है और अच्छे स्वास्थ्य और सेहत को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सुरक्षित और प्रभावी पारंपरिक चिकित्सा यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी ताकि सभी लोगों को गुणवत्तापूर्ण आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं एवं सुरक्षित, प्रभावी और सस्ती आवश्यक दवाओं तक पहुंच प्राप्त हो।

वहीं विश्व सतत विकास लक्ष्यों के लिए 10 साल के महत्वपूर्ण लक्ष्य 2030 के काफी करीब पहुंच चुका है। डब्ल्यूएचओ-जीसीटीएम संबंधित देशों में पारंपरिक चिकित्सा को विनियमित करने, एकीकृत करने और भविष्य में देशों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों की पहचान करेगा। आगामी डब्ल्यूएचओ जीसीटीएम और डब्ल्यूएचओ के सहयोग से कई अन्य पहलें भारत को दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में अपना वर्चस्व बनाने में सहायता प्रदान करेंगी।

देश में पारंपरिक औषधि सेक्टर को मिलेगा बढ़ावा

भारत सरकार के इस कदम से देश में पारंपरिक औषधि को काफी बढ़ावा मिलेगा। डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की मदद से देश में आयुर्वेद को लेकर डेटा अंडरटेकिंग एनालिटिक्स एकत्र करने और प्रभाव का आकलन करने के लिए प्रासंगिक तकनीकी क्षेत्रों, उपकरणों और कार्यप्रणाली में मानदंड, मानक और दिशानिर्देश विकसित करने जैसे कार्य किए जा सकेंगे। उसके अलावा मौजूदा टीएम डेटा बैंकों, वर्चुअल पुस्तकालयों और शैक्षणिक व अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से डब्ल्यूएचओ टीएम सूचना विज्ञान केंद्र की अवधारणा को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

इसके साथ ही प्रासंगिकता के क्षेत्रों में विशिष्ट क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने और परिसर, आवासीय, या वेब-आधारित, और डब्ल्यूएचओ अकादमी और अन्य रणनीतिक भागीदारों के साथ साझेदारी के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने जैसे कार्य किए जाएंगे।

आयुर्वेद में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता

भारत में गैर-संचारी रोगों के बोझ को कम करने में आयुर्वेद में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है। आयुर्वेद उपचार की ताकत के बारे में जागरूकता बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि भारत में आयुर्वेद शास्त्र के अभ्यास के प्राचीन गौरवशाली इतिहास के साथ-साथ पौधों पर आधारित दवाओं के लिए एक समृद्ध संसाधन है।

पोषण के लिए आयुर्वेद से अधिक कुछ और प्रासंगिक नहीं

इसके महत्व को जेएनयू में भी जीव विज्ञान विषय के हिस्से के रूप में आयुर्वेद को शामिल करने के साथ पूरे देश में परिलक्षित किया गया है। महत्वपूर्ण दस्तावेज और फिल्में भी रिलीज की गईं। आशा है कि आम जनता को अपने स्वास्थ्य और कल्याण को बनाए रखने में इससे काफी लाभ होगा। केंद्र सरकार आयुर्वेद को गैर-संचारी रोगों के उपचार के क्षेत्र में सबसे विश्वसनीय और प्रभावी उपचार के तौर पर स्थापित करने के अपने मिशन के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

आयुर्वेद के प्रति बढ़ रही वैश्विक रुचि

कोरोना महामारी के बाद विश्व में भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर गंभीर हो गए हैं। आयुर्वेद के प्रति बढ़ती वैश्विक रुचि सम्पूर्ण दुनिया में आयुर्वेद पर कार्य कर रहे सभी लोगों के प्रयासों फल भी है। दरअसल कोरोना के समय में आयुर्वेद से जुड़े लोगों ने पूरी दुनिया में आम जनमानस की काफी मदद की थी। आयुर्वेद में मनुष्य की इम्यूनिटी बढ़ाने वाली तमाम जड़ी-बूटियां बताई गई हैं जिनके सेवन को लेकर लोगों को उस दौरान जागृत किया गया था। यह लोगों के लिए काफी मददगार साबित हुआ था। जी हां, आयुर्वेद को एक समग्र मानव विज्ञान के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पौधों से लेकर आपकी प्लेट तक, शारीरिक मजबूती से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक, आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा का प्रभाव और असर बहुत व्यापक है।

योग और आयुर्वेद हमारे लिए क्यों है आवश्यक ?

पहले के समय में योगियों को स्वस्थ रहने के लिए आयुर्वेद की जानकारी रखना जरूरी था और आयुर्वेद के वैद्यों को योग की जानकारी आवश्यक थी क्योंकि वो अपने पेशेंट को योग के बारे में बताते थे। आयुर्वेद और योग दोनों ऐसी विधाएं हैं जो वर्तमान चुनौतियों को बहुत अच्छे तरीके से टेकल कर सकते हैं। यही नहीं विश्व के स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा योगदान भी दे सकते हैं। यह केवल स्वास्थ्य का विज्ञान नहीं है। यह एक प्रकार से जीवन विद्या का विज्ञान है। हम अपने जीवन में स्वस्थ और सुरक्षित कैसे रहें इस संबंध में आयुर्वेद और योग के अंदर बहुत विषद चर्चाएं की गई हैं।

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