लक्ष्मी जी ने सीता जी के रूप में लिया था अवतार:– धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास
प्रतापगढ़ माता सीता के अवतरण दिवस की बहुत-बहुत बधाई सतयुग में महराज मनु और माता शतरूपा जी ने अष्टम भू बैकुंठ नैमिषारण्य में गोमती के पावन तट पर 23000 वर्षों तक तपस्या किया। भगवान श्री जगन्नाथ जी ने वरदान के रूप में महाराज मनु से कहा कि हम आपके यहां त्रेतायुग में जब आप महराज अज के पुत्र दशरथ के रूप में अवतरित होंगे तो हम आपके पुत्र के रूप में आपके घर अवतार लेंगे। माता शतरूपा के निवेदन पर भगवान ने लक्ष्मी जी को भी अवतरित होने का वचन दे दिया। इसके पूर्व भगवान के अन्य अवतारों के समय लक्ष्मी जी ने अवतार नहीं लिया था। इसीलिए आप महराज निमि के वंशज में राजा सीरध्वज जिनके पूर्वजों को जनक की उपाधि प्राप्त हुई थी मिथिला में अवतार लिया।

राजा इक्ष्वाकु के पुत्र राजा निमि एक सहस्त्र वर्ष में समाप्त होने वाले यज्ञ को आरंभ किया। जिसमें अपने गुरु वशिष्ठ को होता के रूप में वरण किया किंतु वशिष्ठ जी इंद्र का यज्ञ कराने चले गए । राजा निमि ने गौतम आदि अन्य ऋषियों के द्वारा अपना यज्ञ करने लगे। इंद्र के यज्ञ के समाप्त होने के पश्चात वशिष्ठ आए और यह देख कर के अपने गुरु से यह यज्ञ नहीं करा रहे हैं। उन्होंने राजा निमि को श्राप दे दिया जिसके कारण राजा निमि अपना शरीर छोड़ दिया, किंतु शरीर छोड़ने के पहले राजा निमि ने भी वशिष्ठ को श्राप दिया। जिस कारण वशिष्ट जी का लिंग देह मित्रा वरुण के वीर्य में प्रविष्ट हुआ। उर्वशी के देखने से उनका वीर्य स्खलित होने पर उसी से उन्होंने दूसरा देह धारण किया। है
निमि के शरीर को यज्ञ की समाप्ति पर देवताओं ने अरणी से मंथन किया जिससे एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम जनक पड़ा। राजा का शरीर विदेह था इसलिए वह वैदेह कहलाए। राजा निमि को देवताओं ने वरदान दिया कि अब आप समस्त जीव के आंखों में वास करेंगे तब से आंख की पलकें ऊपर नीचे होने लगी। महराज निमि की 22वीं पीढ़ी में महराज सीरध्वज हुए। उनके द्वारा पुत्र की कामना से यज्ञ भूमि को जोतते समय हल के अग्रभाग से एक कन्या उत्पन्न हुई। जिनका नाम वैदेही पड़ा वही सीता कहलायीं। जिनका विवाह भगवान श्रीमन नारायण के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से हुआ।
21 वर्ष की आयु वीतते समय में जब प्रभु श्री राम 27 वर्ष के थे तो आप उनके साथ वन में गयीं। 14 वर्षों तक वन में वास किया। वन से लौटने के पश्चात 35 वर्ष की आयु में मां सीता गर्भवती हुई और 36 वर्ष की आयु में उनके दो पुत्र महर्षि वाल्मीकि की कुटिया में लव और कुश उत्पन्न हुए। 12 वर्षों पश्चात 45 वर्ष की आयु में माता सीता अष्टम भू बैकुंठ नैमिषारण्य में भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के यज्ञ के समय पुनः पृथ्वी मां की गोद में प्रवेश करके बैकुंठ लोक में भगवान श्रीमन्नारायण के पास क्षीर सागर में ठाकुर जी के श्री चरणों की सेवा करने के लिए इस धरा धाम को छोड़कर चली गई।

