कहानी : अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी …

“स्वाद, हत्या और पाखंड: एक कड़वी सच्चाई”

इंसान को अपनी मौत से डर लगता है, अपनों की मौत से भी। लेकिन दूसरों की मौत को वह स्वाद बना लेता है।

मौत से प्यार नहीं, बल्कि मौत तो अब स्वाद है…

• तंदूरी मुर्गा

• मसालेदार मछली

• हलाल बकरा

• बिना हलाल का गोश्त

• भुना हुआ ऊंट

• छोटी-बड़ी मछलियां

• हल्की आंच पर सिका हुआ स्वाद

मौत किसी और की… और मज़ा हमारा!

मौत का कारोबार

हमने इसे इतनी बारीकी से अपना लिया कि इसे कारोबार बना लिया—

• मुर्गी पालन

• मछली पालन

• बकरी पालन

• पोल्ट्री फार्म

नाम “पालन”, लेकिन असल मकसद हत्या।

गली-गली खुले नॉनवेज रेस्टोरेंट्स, स्लॉटर हाउस, और यह सब “सुविधाजनक” रूप से कानूनी भी बना दिया।

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

जो बोल नहीं सकते, जो अपनी सुरक्षा खुद नहीं कर सकते—हमने उनकी असहायता को अपना अधिकार मान लिया।

क्या उन्हें दर्द नहीं होता? क्या उनकी कराहें नहीं होतीं?  क्या उनकी भी कोई मां नहीं होती? फिर भी, डाइनिंग टेबल पर हड्डियां चबाते बाप अपने बच्चों को नैतिकता सिखाते हैं—“बेटा, कभी किसी का दिल मत दुखाना!”

ईश्वर, धर्म और पाखंड

कभी सोचा, क्या भगवान का भी कोई स्वाद होता है? फिर क्यों—

• ईद पर बकरों की कुर्बानी?

• मोहर्रम में बलि?

• प्रसाद में मछली का भोग?

क्या सच में हम धार्मिक हैं?

• मंगलवार को नॉनवेज नहीं खाएंगे!

• शनिवार को परहेज़ करेंगे!

• नवरात्रि में तो सवाल ही नहीं!

• रमज़ान में परहेज़!

लेकिन बाकी दिन?

झूठ पर झूठ… और खुद को ही धोखा।

सोचिए… इंसानियत का असली अर्थ क्या है?

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