सीता जी लक्ष्मी जी की अवतार है:-धर्माचार्य अनिरुद्ध रामानुज दास

प्रतापगढ़ संत निवास परसन पांडे का पुरवा सेनानी ग्राम देवली में सीता माता का जन्मोत्सव सीता नवमी पर धूमधाम से कोशिश 19 का पालन करते हुए मनाया गया। भगवान लक्ष्मी नारायण एवं भगवान सीताराम एवं श्रीरामचरितमानस के पूजन के पश्चात धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास ने कहा कि सतयुग में निमि नाम के एक परम धर्मात्मा राजा हुये। जो महापुरुषों में श्रेष्ठ तथा पराक्रम से तीनों लोकों में विख्यात थे। उन्हीं के पुत्र मिथि हुए जिनके नाम पर मिथिला नगरी बनी। मिथि के पुत्र का नाम जनक हुआ।


वहीं से जनक की उपाधि इस वंश में दी गई ।महाराज निमि की 21वीं पीढ़ी में ह्रस्वरोमा के सीरध्वज और कुशध्वज नाम के दो पुत्र हुए। सीरध्वज महाप्रतापी महाज्ञानी और कर्मयोगी थे। जिनके राज्य में एक बार अकाल पड़ गया और ब्राह्मणों तथा मंत्रियों के कहने से उन्होंने हल चलाया हल चलाते समय वह एक घटकुंभ से टकराया और उससे एक बालिका उत्पन्न हुई।

वह बालिका किसी देह से नहीं उत्पन्न हुई थी इसलिए उसका नाम वैदेही आगे चलकर उनका नाम सीता।
पूर्व काल में महाराज मनु और शतरूपा ने 23000 वर्षों तक आदि गंगा गोमती के पावन तट पर अष्टम भू बैकुंठ नैमिषारण्य में तपस्या किया था। जहां भगवान नीलमणि जगन्नाथ जी ने दर्शन देकर उनसे कहा था कि हम आपके बालक के रूप में उत्पन्न होंगे, तब आप राजा दशरथ और शतरूपा जी माता कौशल्या के नाम से अवतरित होंगी। शतरूपा जी ने भगवान से वचन लिया था कि अभी तक जितने अवतार आपके हुए उसमें लक्ष्मी जी नहीं आती है इसलिए अबकी बार आप लक्ष्मी जी के साथ पधारिएगा ।
वही लक्ष्मी जी सीता जी के रूप में राजा जनक के यहां अवतरित हुई। जिनसे प्रभु श्री राम का विवाह हुआ। प्रभु श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण जी से उर्मिला एवं भरत से मांडवी तथा शत्रुघ्न से श्रुत्कीर्ति का विवाह हुआ । रानी कैकेई के द्वारा राजा दशरथ से दो वर मांगने पर 14 वर्ष के लिए राम वन को गए। उनके साथ सीता जी और छोटे भाई लक्ष्मण भी थे।
जब श्री राम सीता एवं लक्ष्मण जी वन को गये तो 14 वर्ष जंगलों में भटकते रहे उनके पैरों में कांटे कंकड़ चुभते रहे कष्ट सहती रही। प्रतापगढ़ वासी धन्य है कि दूसरे दिवस जब तमसा नदी से चलकर श्रृंगवेरपुर भगवान गए तो वही एक ऐसा दिन था कि माता सीता के पैरों में कांटे कंकड़ नहीं चूभे क्यों कि वह रथ पर बैठकर प्रतापगढ़ के मोक्षदा ताल आज के जगन्नाथपुर जगदीशपुर रामनगर तथा देवघाट पर सई को पार करते हुए नारायणपुर देवापुर सकली से होते हुए श्रृंगवेरपुर गए थे।
लंका विजय के पश्चात जब लौटे तो भगवान श्रीराम विमान से भारद्वाज आश्रम होकर श्रृंगवेरपुर गुहराज निषाद को लेते हुए प्रतापगढ़ से होते हुए अयोध्या गए जिस कारण इस प्रतापगढ़ अवध में माता के पैरों में कांटे कंकड़ नहीं गड़े।
भगवान कहते हैं ।
अवध सरिस प्रिय मोहि न कोउ। यह प्रसंग जाने कोउ कोउ ।।
सीता जी लक्ष्मी जी की अवतार हैं। आप भगवान नारायण का कभी संग न छोड़ने वाली जगत जननी लक्ष्मी जी नित्य ही है। जिस प्रकार भगवान श्री विष्णु सर्वव्यापक हैं वैसे श्री लक्ष्मी जी नित्य है, श्री विष्णु अर्थ हैं और आप वाणी हैं, श्री हरि नियम हैं और आप नीति हैं, भगवान विष्णु बोध हैं और आप बुद्धि हैं ,वह धर्म हैं आप सत्क्रिया हैं, भगवान श्री विष्णु जगत के स्रष्टा हैं और लक्ष्मी जी सृष्टि हैं ।श्रीहरि भूदर अर्थात पर्वत और लक्ष्मी जी भूमि है, भगवान संतोष हैं लक्ष्मी जी नित्य तुष्टि है भगवान काम है और लक्ष्मी जी इच्छा है वह यज्ञ हैं और माताजी दक्षिणा है। मधुसूदन यदि यजमान गृह हैं और लक्ष्मी जी यज्ञशाला है, भगवान साम स्वरूप है और श्री कमला देवी उदगीति हैं । यदि भगवान श्री गोविंद समुद्र है और लक्ष्मी जी उसकी तरंग है। देवाधिदेव श्री विष्णु कुबेर है और लक्ष्मी जी साक्षात रिद्धि है, भगवान श्री विष्णु शंकर हैं और लक्ष्मी जी गौरी हैं। श्री केशव सूर्य हैं और कमल बासनी लक्ष्मी जी उनकी प्रभा हैं। भगवान नारायण राम है और लक्ष्मी जी सीता है ।इनके परे और कोई नहीं है इसलिए यह सदा साथ विराजमान रहते हैं। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उर्मिला रामानुज दासी , जय प्रकाश पांडे रंगनाथ पांडे विनय कुमार पांडे विश्वम प्रकाश पांडे विजय शंकर ओ पी यादव नितिन कुमार रिद्धि पांडे बादल कुमार नीलम पांडे राखी पांडे वसुंधरा सहित अनेक भक्त गण उपस्थित रहे उपस्थित रहे।

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