पापमोचनी एकादशी के व्रत से सारे पापों का क्षय हो जाता है:– धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुजदास
पापमोचनी एकादशी की बहुत-बहुत बधाई बहुत-बहुत मंगल कामनाएं।
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा भगवन चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है बताने की कृपा कीजिए।
भगवान श्री कृष्ण बोले राजेंद्र सुनो मैं इस विषय में एक पाप नाशक उपाख्यान सुनाऊंगा। जिसे चक्रवर्ती नरेश मांधाता के पूछने पर महर्षि लोमस ने कहा था।
मांधाता बोले भगवन मैं लोगों के हित की इच्छा से यह सुनना चाहता हूं कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? उसकी क्या विधि है, तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब बातें बताइए।
लोमस जी ने कहा नृप श्रेष्ठ पूर्व काल की बात है। अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में जहां गंधर्वों की कन्याएं अपने किन्नरों के साथ बाजे बजाते हुए विहार करते हैं। मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेधावी को मोहित करने के लिए गई। वह महर्षि वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।मंजुघोषा भय के कारण आश्रम से एक कुछ दूर ही ठहर गई, सुंदर ढंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी। मुनिश्रेष्ठ मेधावी घूमते हुए उधर से निकले और उस सुंदरी अप्सरा को इस प्रकार गान करते देखा ,सेना सहित कामदेव से परास्त होकर बरबस मोह के वशीभूत हो गए। उनकी ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आई और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी। मेधावी भी उनके साथ रमण करने लगे काम वश रमण करते हुए उन्हें रात और दिन का भान ही ना रहा। इस प्रकार मुनि जनोचित सदाचार का लोप करके, अप्सरा के साथ भ्रमण करते हुए बहुत दिन व्यतीत हो गए। मंजुघोषा देवलोक में जाने को तैयार हुई जाते समय उसने मुनि श्रेष्ठ मेधावी से कहा हे ब्रह्मन अब मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दे दीजिए।
मेधावी बोले देवी जब तक सवेरे की संध्या ना हो जाए तब तक मेरे पास ठहर जाओ।अप्सरा ने कहा अब तक न जाने कितनी संध्या चली गई मुझ पर कृपा कर बीते हुए समय का विचार तो कीजिए।
लोमस जी कहते हैं, राजन अप्सरा की बात सुनकर मेधावी के नेत्र आश्चर्य से चकित हो गए, उस समय उन्होंने बीते हुए समय का हिसाब लगाया तो ज्ञात हुआ उसके साथ रहते 57 वर्ष व्यतीत हो गए। उसे अपनी तपस्या का विनाश करने वाली जानकर मुनि को उस पर बड़ा क्रोध हुआ, उन्होंने श्राप देते हुए कहा पापनी तू पिशाची हो जा। तब वह मुनि के श्राप से दग्ध होकर विनय से नतमस्तक हो बोली विप्रवर मेरे श्राप का उद्धार कीजिए। सात वाक्य बोलने या सात पग साथ साथ चलने मात्र से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है। ब्रह्मन मैं तो आपके साथ अनेक वर्ष व्यतीत किए हैं। अतः स्वामी मुझ पर कृपा कीजिए।
ऐसा सुनकर मुनि ने कहा चैत्र कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है उसका नाम पापमोचनी है। वह सब पापों का क्षय करने वाली है। सुंदरी इसका व्रत करने पर तुम्हारी पिशाचिता दूर होगी। ऐसा कह कर मेधावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गए।
उन्हें आया देख च्यवन ने पूछा बेटा यह क्या किया? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला। मेधावी बोले पिताजी मैं अप्सरा के साथ रमण करने का पाप किया है। कोई ऐसा प्रायश्चित बताइए जिससे पाप का नाश हो जाए। च्यवन ऋषि ने कहा बेटा चैत्र कृष्ण पक्ष में जो पाप मोचनी एकादशी होती है उसका व्रत करने पर पापराशि का विनाश हो जाएगा। पिता का यह कथन सुनकर मेधावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया। व्रत करने के कारण उनका पाप नष्ट हो गया, और वह पुनः तपस्या से परिपूर्ण हो गए।
इसी प्रकार मंजुघोषा भी व्रत करके या पिशाच योनि से मुक्त हुई और दिव्य रूप धारण कर लिया। श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्ग लोक में चली गई हे।
राजन जो श्रेष्ठ मनुष्य पापमोचनी एकादशी का व्रत करते हैं उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है। इसको पढ़ने और सुनने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म हत्या, स्वर्ण की चोरी, सुरापान और गुरु पत्नी गमन करने वाले महापातकी भी इस व्रत के करने से पाप मुक्त हो जाते हैं। यह व्रत बहुत ही पुण्यमय है।
धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुजदास रामानुज आश्रम संत रामानुज मार्ग शिवजीपुरम प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश।
कृपा पात्र परम पूज्य श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जियर स्वामी मठ जगन्नाथ पुरी एवं पीठाधीश्वर श्री नैमिषनाथ भगवान रामानुज कोट अष्टंम भू बैकुंठ नैमिषारण्य ।